व्यापारिक_परेशानी
जीवन यापन के लिए हम सभी को कोई न कोई रोजगार या व्यवसाय तो करना ही पडता है और सबकी यही कामना भी होती है कि वह जो कुछ भी कार्य करे, उसमें दिन रात उन्नति हो। लेकिन कभी कभी ऐसा नही हो पाता और निरन्तर हानि का सामना करना पडता है या घाटा उठाना पडता है।
ऐसी स्थिति अगर बन रही है तो किसी भी महीने की त्रयोदशी को व्रत करें, केवल एक समय फलाहार ही करें और सांयकाल यानि जब अंधेरा हो जाए तो शिवलिंग पर शुद्ध घी दीपक जलायें और “ॐ श्रीं श्रीं श्रीं परमां सिद्धि श्रीं श्रीं श्रीं” मन्त्र की 5 माला जाप करें। ऐसा लगातार 7 त्रयोदशी तक करें तो इससे व्यापार में आ रहे अवरोध समाप्त हो जायेंगें।
अगर किसी ने दुकान या रोजगार बांध दिया है तो सिर्फ उस स्थिति में ये मंत्र काम नहीं करेगा बाकी लगभग सभी परेशानी दूर कर सकता है।
#खुदकापैसाउधारफंसाहैतो
कभी कभी उधार में काफी पैसा फंस जाता है। ऐसी स्थिति में किसी भी शुक्ल पक्ष की अष्टमी को थोड़ी साफ रुई खरीदकर ले आएँ। उसकी चार बत्तियाँ बना लें। बत्तियों को जावित्री, नागकेसर तथा काले तिल से थोड़ा सा गीला करके सान लें फिर यह चारों बत्तियाँ किसी चौमुखे दिए में रखकर रात्रि को सुविधानुसार किसी भी समय दिए में तिल का तेल डालकर चौराहे पर चुपके से रखकर जला दें। मन में सम्बन्धित व्यक्ति का नाम, जिनसे कार्य है, तीन बार पुकारें। विश्वास रखें परिश्रम से अर्जित आपकी धनराशि आपको अवश्य ही मिलेगी। इसके बाद बिना पीछे मुड़े चुपचाप घर लौट आएँ। अगले दिन सबसे पहले एक रोटी पर गुड़ रखकर गाय को खिला दें। यदि गाय न मिल सके तो उसके नाम से निकालकर घर की छत पर रख दें।
।ओम गुरुजी को आदेश गुरजी को प्रणाम, धरती माता धरती पिता, धरती धरे ना धीरबाजे श्रींगी बाजे तुरतुरि आया गोरखनाथमीन का पुत् मुंज का छड़ा लोहे का कड़ा हमारी पीठ पीछे यति हनुमंत खड़ा, शब्द सांचा पिंड काचास्फुरो मन्त्र ईश्वरो वाचा।।
इस मन्त्र को सात बार पढ़ कर चाकू से अपने चारों तरफ रक्षा रेखा खींच ले गोलाकार, स्वयं हनुमानजी साधक की रक्षा करते हैं। शर्त यह है कि मंत्र को विधि विधान से पढ़ा गया हो।
मन्त्र ||
सत नमो आदेश! गुरूजी को आदेश ॐ गुरूजी ,ड़ार शाबर बर्भर जागे जागे अढैया और बराट
मेरा जगाया न जागेतो तेरा नरक कुंड में वास ,दुहाई शाबरी माई की,दुहाई शाबरनाथ की ,आदेश गुरु गोरख को,
|| विधि ||
इस मन्त्र को प्रतिदिन गोबर का कंडा सुलगाकर उसपर गुगल डाले और इस मन्त्र का १०८ बार जाप करे! जब तक मन्त्र जाप हो गुगल सुलगती रहनी चाहिये यह क्रिया आपको २१ दिन करनी है , अच्छा होगा आप यह मन्त्र अपने गुरु के मुख से ले या किसी योग्य साधक के मुख से ले ! गुरु कृपा ही सर्वोपरि है कोई भी साधना करने से पहले गुरु आज्ञा जरूर ले
ॐ अवधूनाथ गोरष आवे, सिद्ध बाल गुदाई |
घोड़ा चोली आवे, आवे कन्थड़ वरदाई || १ ||
सिध कणेरी पाव आवे, आवे औलिया जालंधर |
अजै पाल गुरुदेव आवे, आवे जोगेसर मछंदर || २ ||
धूँधलीमल आवे, आवे गोपिचन्द निजततगहणा |
नौनाथ आवो सिधां सहत महाराजै !
जय अलख – आदेश आदेश आदेश ..!
मंत्र ॥
ॐ वीर वीर महावीर।
सात समुन्दर का सोखा नीर।
देवदत्त (शत्रु क नाम) के ऊपर चौकी चढ़े।
हियो फोड़ चोटी चढ़े।
सांस न आव्यो पड्यो रहे।
काया माहीं जीव रहे।
लाल लंगोट तेल सिंदूर।
पूजा मांगे महावीर।
अन्तर कपडा पर तेल सिंदूर।
हजरत वीर कि चौकी रहे।
ॐ नमो आदेश आदेश आदेश।
विधि: यह प्रयोग शत्रु को मरेगा नहि लेकीन वो मारनतुल्य स्तिथि कर देगा उसकी। देवदत्त के स्थान पर शत्रुक नाम लो। इसमें उसका शरीर स्थिर रहे गा लेकिनश्वास अनुभव नहि होगा।
मंगलवार कि रात को किसी चौराहे की हनुमान मंदिर मेंपहले हनुमान जी की पूजा करो। अब शत्रु के किसीवस्त्र पर तेल ओर सिंदूर लगाकर देवदत्त के बदले शत्रुक नाम लेकर उसमे शत्रु कि प्राण प्रतिष्ठा करें अब उसकपडे को किसि हंडिया में रख कर उसका मुख बन्दकर उसे भली प्रकार बन्द करके जमीन में दबा दें – औरजब शत्रु को ठीक करना हो तो उस हंडिया को खोल दें।लेकिन उस को लोहे कि किलों से या बबुल के कांटो सेन छेदें नहि तो शत्रु मर जाएगा।
मंत्र ॥
ॐ नमो सात समुन्द्र के बीच शिला।
जिस पर सुलेमान पैगम्बर बैठे।
सुलेमान पैगम्बर के चार मुवकिल।
पूर्व को धाया देव दानवों को बांधीलाया।
दूसरा मुवकिल पश्चिम को धाया।
भूत प्रेत को बाँधी लाया।
चौथा मुवकिल उत्तर को धाया।
अयुत पितृ को बांधी लाया।
चौथा मुवकिल दक्षिण को धाया।
डाकिनी शाकिनी को पकडी लाया।
चार मुवकिल चहुँ दिशि धावें।
छलछिद्र कोऊ रहन न पावे।
रोग दोष को दूर भगावे।
शब्द शांचा।
पिंड कांचा।
फुरे मन्त्र ईश्वरो वाचा।
विधि: विधि: पहले तो इस मन्त्र कोग्रहण काल में २१ माला जप कर सिद्धकर लो। फिर जब भी जरूरत हो तबकपडे कि चार गुड़िया बनाना फ़िरलोबान जला कर १०८ बार इस मंत्रका जप करना है। अब मंत्र से इनचारोँ गुड़िया य पुतलियों कोअभिमंत्रित करके चार अलग अलगकौनों में दबा दें। अब फिर १५ मंबैठकर कम्बल के आसान पर इसमन्त्र क जप करें। इस से सभी अमंगलका नाश होकर सभी विघ्नो क कामखतम हो जता है और मनोवांछित कार्य में सफलता मिलती है चाहे
हाथ माया सिद्धि और शत्रु उच्चाटन प्रयोग
॥ मंत्र ॥
ॐ हस्त अली हस्तों का सरदार।
लगी पुकार।
करो स्वीकार।
हस्त अली।
तेरी फ़ौज चली।
भूत प्रेतों में मची खलबली।
हस्त अली।
मेरा हाथों के साथ।
तेरे भूत प्रेत।
करें मेरी सत्ता स्वीकार।
पाक हस्त की सवारी।
तड़पता हुआ भागे।
जब मैंने चोट ,मारी।
आकाश की उचाईयों में।
धरती की गहराइयों में।
लेना तूं खोज खबर।
सब पर जाये तेरी नजर।
इन हाथों पर कौन बसे।
नाहर सिंह वीर बसे।
जाग रे जाग नाहरा।
हस्त अली की आन चली।
मारूं जब भी मैं चोट।
भूत प्रेत किये कराये लगे लगाए ।
अला बला की खोट।
जादू गुड़िया।
मंत्र की पुड़िया।
श्मशान की ख़ाक।
मुर्दे की राख।
सभी दोष हो जाएँ ख़ाक।
मंत्र साँचा।
पिंड कांचा।
फुरे मंत्र ईश्वरोवाचा।
विधि: इस प्रयोग से हाथों की माया सिद्ध होती है। सूर्यग्रहण के पूरे पर्वकाल तथा उसकी ही रात्रि को अपने समक्ष लोबान सुलगाकर चमेली के पुष्प रखें फिर इस मंत्र को निरंतर जपें तो यह मंत्र सिद्ध हो जायेगा।
इसके लाभार्थ अपने हाथ को इस मंत्र से शक्तिकृत करके किसी को मरने से उसके दोषों का उच्चाटन हो जाता है। इस हाथ से किये हुए सभी कार्य सिद्ध हो जाते है।
शत्रु को यह हाथ छुआने से पहले शत्रुता का नाश होता है। अगर किसी कारन से शत्रुता बहुत गहरी है तो शत्रु वहां से भाग खड़ा होता है। उसका तीव्र उच्चाटन हो जाता है।
21…कोई तांत्रिक प्रयोग काटने का उच्चाटन
॥ मंत्र ॥
काला कलुवा चौसठ वीर।
मेरा कलुवा मारा तीर।
जहां को भेजूं वहां को जाये।
मॉस मच्छी को छुवन न जाए।
अपना मार आप ही खाए।
चलत बाण मारूं।
उलट मूठ मारूं।
मार मार कलुवा तेरी आस चार।
चौमुखा दिया न बाती।
जा मारूं वाही को जाती।
इतना काम मेरा न करे।
तो तुझे अपनी माता का दूध हराम।
विधि: तांत्रिक प्रयोग आदि के द्वारा मारन प्रयोगों में कई प्रयोग है जैसे बाण और मूठ मारना , ये कुछ सरल और अचूक है।
लेकिन ये देिखऐ नहीं देते और जब भी आपको ये लगे की ऐसा हुआ है तब लगातार ऊपर दिया हुआ मंत्र का जप करते रहे, तांत्रिक कर्म वापिस चला जायेगा।
लेकिन पहले इस मंत्र को सिद्ध कर लो. १०८ बार जपो प्रतिदिन ४१ दिनों तक।
कला को अवतारी शक्ति की एक इकाई मानें तो श्रीकृष्ण सोलह कला अवतार माने गए हैं। सोलह कलाओं से युक्त अवतार पूर्ण माना जाता हैं, अवतारों में श्रीकृष्ण में ही यह सभी कलाएं प्रकट हुई थी। इन कलाओं के नाम निम्नलिखित हैं।
१. श्री धन संपदा : प्रथम कला धन संपदा नाम से जानी जाती हैं है। इस कला से युक्त व्यक्ति के पास अपार धन होता हैं और वह आत्मिक रूप से भी धनवान हो। जिसके घर से कोई भी खाली हाथ वापस नहीं जाता, उस शक्ति से युक्त कला को प्रथम कला! श्री-धन संपदा के नाम से जाना जाता हैं।
२. भू अचल संपत्ति : वह व्यक्ति जो पृथ्वी के राज भोगने की क्षमता रखता है; पृथ्वी के एक बड़े भू-भाग पर जिसका अधिकार है तथा उस क्षेत्र में रहने वाले जिसकी आज्ञाओं का सहर्ष पालन करते हैं वह कला! भू अचल संपत्ति कहलाती है।
३. कीर्ति यश प्रसिद्धि : जिस व्यक्ति की मान-सम्मान और यश की कीर्ति चारों और फैली हुई हो, लोग जिसके प्रति स्वतः ही श्रद्धा और विश्वास रखते हैं, वह कीर्ति यश प्रसिद्धि कला से संपन्न माने जाते है।
४. इला वाणी की सम्मोहकता : इस कला से संपन्न व्यक्ति मोहक वाणी युक्त होता हैं; व्यक्ति की वाणी सुनकर क्रोधी व्यक्ति भी अपना सुध-बुध खोकर शांत हो जाता है तथा मन में भक्ति की भावना भर उठती हैं।
५. लीला आनंद उत्सव : इस कला से युक्त व्यक्त अपने जीवन की लीलाओं को रोचक और मोहक बनाने में सक्षम होता है। जिनकी लीला कथाओं को सुनकर कामी व्यक्ति भी भावुक और विरक्त होने लगता है।
६. कांति सौदर्य और आभा : ऐसे व्यक्ति जिनके रूप को देखकर मन स्वतः ही आकर्षित होकर प्रसन्न हो जाता है, वे इस कला से युक्त होते हैं। जिसके मुखमंडल को देखकर बार-बार छवि निहारने का मन करता है वह कांति सौदर्य और आभा कला से संपन्न होता है।
७. विद्या मेधा बुद्धि : सभी प्रकार के विद्याओं में निपुण व्यक्ति जैसे! वेद-वेदांग के साथ युद्ध और संगीत कला इत्यादि में पारंगत व्यक्ति इस काला के अंतर्गत आते हैं।
८. विमला पारदर्शिता : जिसके मन में किसी प्रकार का छल-कपट नहीं होता वह विमला पारदर्शिता कला से युक्त होता हैं; इनके लिए सभी एक समान होते हैं, न तो कोई बड़ा है और न छोटा।
९. उत्कर्षिणि प्रेरणा और नियोजन : युद्ध तथा सामान्य जीवन में जी प्रेरणा दायक तथा योजना बद्ध तरीके से कार्य करता हैं वह इस कला से निपुण होता हैं। व्यक्ति में इतनी शक्ति व्याप्त होती हैं कि लोग उसकी बातों से प्रेरणा लेकर लक्ष्य भेदन कर सकें।
१०. ज्ञान नीर क्षीर विवेक : अपने विवेक का परिचय देते हुए समाज को नई दिशा प्रदान करने से युक्त गुण ज्ञान नीर क्षीर विवेक नाम से जाना जाता हैं।
११. क्रिया कर्मण्यता : जिनकी इच्छा मात्र से संसार का हर कार्य हो सकता है तथा व्यक्ति सामान्य मनुष्य की तरह कर्म करता हैं और लोगों को कर्म की प्रेरणा देता हैं।
१२. योग चित्तलय : जिनका मन केन्द्रित है, जिन्होंने अपने मन को आत्मा में लीन कर लिया है वह योग चित्तलय कला से संपन्न होते हैं; मृत व्यक्ति को भी पुनर्जीवित करने की क्षमता रखते हैं।
१३. प्रहवि अत्यंतिक विनय : इसका अर्थ विनय है, मनुष्य जगत का स्वामी ही क्यों न हो, उसमें कर्ता का अहंकार नहीं होता है।
१४. सत्य यथार्य : व्यक्ति कटु सत्य बोलने से भी परहेज नहीं रखता और धर्म की रक्षा के लिए सत्य को परिभाषित करना भी जनता हैं यह कला सत्य यथार्य के नाम से जानी जाती हैं।
१५. इसना आधिपत्य : व्यक्ति में वह गुण सर्वदा ही व्याप्त रहती हैं, जिससे वह लोगों पर अपना प्रभाव स्थापित कर पाता है, आवश्यकता पड़ने पर लोगों को अपना प्रभाव की अनुभूति करता है।
१६. अनुग्रह उपकार : निस्वार्थ भावना से लोगों का उपकार करन…
अष्ट सिद्धियां वे सिद्धियाँ हैं, जिन्हें प्राप्त कर व्यक्ति किसी भी रूप और देह में वास करने में सक्षम हो सकता है। वह सूक्ष्मता की सीमा पार कर सूक्ष्म से सूक्ष्म तथा जितना चाहे विशालकाय हो सकता है।
१. अणिमा : अष्ट सिद्धियों में सबसे पहली सिद्धि अणिमा हैं, जिसका अर्थ! अपने देह को एक अणु के समान सूक्ष्म करने की शक्ति से हैं। जिस प्रकार हम अपने नग्न आंखों एक अणु को नहीं देख सकते, उसी तरह अणिमा सिद्धि प्राप्त करने के पश्चात दुसरा कोई व्यक्ति सिद्धि प्राप्त करने वाले को नहीं देख सकता हैं। साधक जब चाहे एक अणु के बराबर का सूक्ष्म देह धारण करने में सक्षम होता हैं।
२. महिमा : अणिमा के ठीक विपरीत प्रकार की सिद्धि हैं महिमा, साधक जब चाहे अपने शरीर को असीमित विशालता करने में सक्षम होता हैं, वह अपने शरीर को किसी भी सीमा तक फैला सकता हैं।
३. गरिमा : इस सिद्धि को प्राप्त करने के पश्चात साधक अपने शरीर के भार को असीमित तरीके से बढ़ा सकता हैं। साधक का आकार तो सीमित ही रहता हैं, परन्तु उसके शरीर का भार इतना बढ़ जाता हैं कि उसे कोई शक्ति हिला नहीं सकती हैं।
४. लघिमा : साधक का शरीर इतना हल्का हो सकता है कि वह पवन से भी तेज गति से उड़ सकता हैं। उसके शरीर का भार ना के बराबर हो जाता हैं।
५. प्राप्ति : साधक बिना किसी रोक-टोक के किसी भी स्थान पर, कहीं भी जा सकता हैं। अपनी इच्छानुसार अन्य मनुष्यों के सनमुख अदृश्य होकर, साधक जहाँ जाना चाहें वही जा सकता हैं तथा उसे कोई देख नहीं सकता हैं।
६. पराक्रम्य : साधक किसी के मन की बात को बहुत सरलता से समझ सकता हैं, फिर सामने वाला व्यक्ति अपने मन की बात की अभिव्यक्ति करें या नहीं।
७. इसित्व : यह भगवान की उपाधि हैं, यह सिद्धि प्राप्त करने से पश्चात साधक स्वयं ईश्वर स्वरूप हो जाता हैं, वह दुनिया पर अपना आधिपत्य स्थापित कर सकता हैं।
८. वसित्व : वसित्व प्राप्त करने के पश्चात साधक किसी भी व्यक्ति को अपना दास बनाकर रख सकता हैं। वह जिसे चाहें अपने वश में कर सकता हैं या किसी की भी पराजय का कारण बन सकता हैं।
नव-निधियां किसी भी मनुष्य को असामान्य और अलौकिक शक्तियां प्रदान करने में सक्षम हैं।
१. पर-काया प्रवेश : किसी अन्य के शरीर में अपनी आत्मा का प्रवेश करवाना पर-काया प्रवेश कहलाता हैं, साधक अपनी आत्मा को यहाँ तक की किसी मृत देह में प्रवेश करवा कर उसे जीवित कर सकता हैं।
२. हादी विद्या : यह सिद्धि प्राप्त करने के पश्चात साधक को भूख तथा प्यास नहीं लगती हैं, वह जब तक चाहें बिना खाए-पीयें रह सकता हैं।
३. कादी विद्या : कादी विद्या प्राप्ति के बाद व्यक्ति के शरीर तथा मस्तिष्क पर बदलते मौसम का कोई प्रभाव नहीं पड़ता हैं, ना तो ठंड लगती है ना गर्मी, ना ही उस पर वर्षा का कोई असर होता है ना तूफान कुछ बिगाड़ पाता है।
४. वायु गमन सिद्धि : साधक वायु या वातावरण में तैरने में सक्षम होता हैं, और क्षण भर में एक स्थान से दूसरे स्थान पर पहुँच सकता हैं।
५. मदलसा सिद्धि : साधक अपने शरीर के आकार को अपनी इच्छानुसार कम या बड़ा सकता है, या कहें तो अपने शारीरिक आकर में अपने इच्छा अनुसार वृद्धि या ह्रास कर सकता हैं।
६. कनकधर सिद्धि : यह सिद्धि प्राप्त करने वाला साधक असीमित धन का स्वामी बन जाता है, उसकी धन-संपदा का कोई सानी नहीं रहती।
७. प्रक्य साधना : इस साधना में सफल होने के पश्चात साधक अपने शिष्य को किसी विशिष्ट महिला के गर्भ से जन्म धारण करने की आज्ञा दे सकता हैं।
८. सूर्य विज्ञान : इस सिद्धि को प्राप्त करने के पश्चात साधक, सूर्य की किरणों की सहायता से कोई भी तत्व किसी अन्य तत्व में बदल या परिवर्तित सकता है।
९. मृत संजीवनी विद्या : इस विद्या को प्राप्त करने के पश्चात, साधक किसी भी मृत व्यक्ति को पुनः जीवित कर सकता है।
शास्त्रों और ग्रंथों के अनुसार इन मंत्रों का जाप कर सकते हैं, लेकिन कुंडली में कई अन्य ग्रहों की स्थिति भी जानने के लिए आप ज्योतिष पंडित से कुंडली को लेकर सलाह अवश्य ले लें।
- इस मंत्र का जाप करने से ना केवल आपके जीवन पर पड़ने वाले ग्रहों के प्रतिकूल असर को कम करेगा, बल्कि शत्रुओं का भी नाश करेगा।मंत्र का जाप करने से पहले सुपारी और पान, नींबू रखें 11 बार का संकल्प लेकर कर सकते हैं।
ऊं श्रीम ह्रीम क्लीम दोम
ज्वाला ज्वाला शूलीनी।।
आस्या याजामानास्या
सर्वा शत्रून संहारा संहारा।।
क्षेम लभाम कुरू कुरू
दुष्टा ग्राहम हम फट स्वाहा।।
- कार्य सिद्धि के लिए :
ओम् आं हृां क्ष्वीं ओम् हृीं तथा ओम नमो भगवते वासुदेवाय नमः।
- कोर्ट केस की सुनवाई में जाते समय :
ओम् मम शत्रुन हन कालि शर शर,दम दम मर्दय मर्दय तापय तापय।
- शत्रुओं को परास्त करने के लिए
गोपय पताय शोषय शोषय ,उत्सादय उत्सादय, मम सिद्धि देहि फट्।
- पति-पत्नी के संबंधों को सुधारने के लिए
ओम् अस्य श्री सुरी मंत्रस्वार्थवर्ण, ऋषि इति शिपस स्वाहा।
- विवाह में अड़चनें आ रही हो तो
ओम् गौरी पति महादेवाय मम इच्छित वर प्राप्त्यर्थ गोर्ये नमः।
व्यापार वृधि के लिए
१. यदि परिश्रम के पश्चात् भी कारोबार ठप्प हो, या धन आकर खर्च हो जाता हो तो यह टोटका काम में लें। किसी गुरू पुष्य योग और शुभ चन्द्रमा के दिन प्रात: हरे रंग के कपड़े की छोटी थैली तैयार करें। श्री गणेश के चित्र अथवा मूर्ति के आगे “संकटनाशन गणेश स्तोत्र´´ के 11 पाठ करें। तत्पश्चात् इस थैली में 7 मूंग, 10 ग्राम साबुत धनिया, एक पंचमुखी रूद्राक्ष, एक चांदी का रूपया या 2 सुपारी, 2 हल्दी की गांठ रख कर दाहिने मुख के गणेश जी को शुद्ध घी के मोदक का भोग लगाएं। फिर यह थैली तिजोरी या कैश बॉक्स में रख दें। गरीबों और ब्राह्मणों को दान करते रहे। आर्थिक स्थिति में शीघ्र सुधार आएगा। 1 साल बाद नयी थैली बना कर बदलते रहें।
2॰ किसी के प्रत्येक शुभ कार्य में बाधा आती हो या विलम्ब होता हो तो रविवार को भैरों जी के मंदिर में सिंदूर का चोला चढ़ा कर “बटुक भैरव स्तोत्र´´ का एक पाठ कर के गौ, कौओं और काले कुत्तों को उनकी रूचि का पदार्थ खिलाना चाहिए। ऐसा वर्ष में 4-5 बार करने से कार्य बाधाएं नष्ट हो जाएंगी।
3॰ रूके हुए कार्यों की सिद्धि के लिए यह प्रयोग बहुत ही लाभदायक है। गणेश चतुर्थी को गणेश जी का ऐसा चित्र घर या दुकान पर लगाएं, जिसमें उनकी सूंड दायीं ओर मुड़ी हुई हो। इसकी आराधना करें। इसके आगे लौंग तथा सुपारी रखें। जब भी कहीं काम पर जाना हो, तो एक लौंग तथा सुपारी को साथ ले कर जाएं, तो काम सिद्ध होगा। लौंग को चूसें तथा सुपारी को वापस ला कर गणेश जी के आगे रख दें तथा जाते हुए कहें `जय गणेश काटो कलेश´।
4॰ सरकारी या निजी रोजगार क्षेत्र में परिश्रम के उपरांत भी सफलता नहीं मिल रही हो, तो नियमपूर्वक किये गये विष्णु यज्ञ की विभूति ले कर, अपने पितरों की `कुशा´ की मूर्ति बना कर, गंगाजल से स्नान करायें तथा यज्ञ विभूति लगा कर, कुछ भोग लगा दें और उनसे कार्य की सफलता हेतु कृपा करने की प्रार्थना करें। किसी धार्मिक ग्रंथ का एक अध्याय पढ़ कर, उस कुशा की मूर्ति को पवित्र नदी या सरोवर में प्रवाहित कर दें। सफलता अवश्य मिलेगी। सफलता के पश्चात् किसी शुभ कार्य में दानादि दें।
5॰ व्यापार, विवाह या किसी भी कार्य के करने में बार-बार असफलता मिल रही हो तो यह टोटका करें- सरसों के तैल में सिके गेहूँ के आटे व पुराने गुड़ से तैयार सात पूये, सात मदार (आक) के पुष्प, सिंदूर, आटे से तैयार सरसों के तैल का रूई की बत्ती से जलता दीपक, पत्तल या अरण्डी के पत्ते पर रखकर शनिवार की रात्रि में किसी चौराहे पर रखें और कहें -“हे मेरे दुर्भाग्य तुझे यहीं छोड़े जा रहा हूँ कृपा करके मेरा पीछा ना करना।´´ सामान रखकर पीछे मुड़कर न देखें।
6॰ सिन्दूर लगे हनुमान जी की मूर्ति का सिन्दूर लेकर सीता जी के चरणों में लगाएँ। फिर माता सीता से एक श्वास में अपनी कामना निवेदित कर भक्ति पूर्वक प्रणाम कर वापस आ जाएँ। इस प्रकार कुछ दिन करने पर सभी प्रकार की बाधाओं का निवारण होता है।
7॰ किसी शनिवार को, यदि उस दिन `सर्वार्थ सिद्धि योग’ हो तो अति उत्तम सांयकाल अपनी लम्बाई के बराबर लाल रेशमी सूत नाप लें। फिर एक पत्ता बरगद का तोड़ें। उसे स्वच्छ जल से धोकर पोंछ लें। तब पत्ते पर अपनी कामना रुपी नापा हुआ लाल रेशमी सूत लपेट दें और पत्ते को बहते हुए जल में प्रवाहित कर दें। इस प्रयोग से सभी प्रकार की बाधाएँ दूर होती हैं और कामनाओं की पूर्ति होती है।
8॰ रविवार पुष्य नक्षत्र में एक कौआ अथवा काला कुत्ता पकड़े। उसके दाएँ पैर का नाखून काटें। इस नाखून को ताबीज में भरकर, धूपदीपादि से पूजन कर धारण करें। इससे आर्थिक बाधा दूर होती है। कौए या काले कुत्ते दोनों में से किसी एक का नाखून लें। दोनों का एक साथ प्रयोग न …
बुद्धि और ज्ञान
१. माघ मास की कृष्णपक्ष अष्टमी के दिन को पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र में अर्द्धरात्रि के समय रक्त चन्दन से अनार की कलम से “ॐ ह्वीं´´ को भोजपत्र पर लिख कर नित्य पूजा करने से अपार विद्या, बुद्धि की प्राप्ति होती है।
2॰ उदसौ सूर्यो अगादुदिदं मामकं वच:।
यथाहं शत्रुहोऽसान्यसपत्न: सपत्नहा।।
सपत्नक्षयणो वृषाभिराष्ट्रो विष सहि:।
यथाहभेषां वीराणां विराजानि जनस्य च।।
यह सूर्य ऊपर चला गया है, मेरा यह मन्त्र भी ऊपर गया है, ताकि मैं शत्रु को मारने वाला होऊँ। प्रतिद्वन्द्वी को नष्ट करने वाला, प्रजाओं की इच्छा को पूरा करने वाला, राष्ट्र को सामर्थ्य से प्राप्त करने वाला तथा जीतने वाला होऊँ, ताकि मैं शत्रु पक्ष के वीरों का तथा अपने एवं पराये लोगों का शासक बन सकूं।
21 रविवार तक सूर्य को नित्य रक्त पुष्प डाल कर अर्ध्य दिया जाता है। अर्ध्य द्वारा विसर्जित जल को दक्षिण नासिका, नेत्र, कर्ण व भुजा को स्पर्शित करें। प्रस्तुत मन्त्र `राष्ट्रवर्द्धन´ सूक्त से उद्धृत है।
३॰ बच्चों का पढ़ाई में मन न लगता हो, बार-बार फेल हो जाते हों, तो यह सरल सा टोटका करें-
शुक्ल पक्ष के पहले बृहस्पतिवार को सूर्यास्त से ठीक आधा घंटा पहले बड़ के पत्ते पर पांच अलग-अलग प्रकार की मिठाईयां तथा दो छोटी इलायची पीपल के वृक्ष के नीचे श्रद्धा भाव से रखें और अपनी शिक्षा के प्रति कामना करें। पीछे मुड़कर न देखें, सीधे अपने घर आ जाएं। इस प्रकार बिना क्रम टूटे तीन बृहस्पतिवार करें। यह उपाय माता-पिता भी अपने बच्चे के लिये कर सकते हैं।
चमत्कारिक विद्याएं, अपनाएं और सुखी हो जाएं
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भागते-दौड़ते जीवन में चमत्कार से ज्यादा जरूरी व्यक्ति खुद को बचाने में लगा है। भारत में वैसे तो कई तरह की सिद्धियों, विद्याओं की चर्चा की जाती है। सिद्धियों में तो अष्ट सिद्धियों की चर्चा बहुत है। लेकिन हम आपको यहां बताते हैं कुछ खास विद्याओं के बारे में जानकारी। इनके बारे में जानकर आप अपना जीवन सुंदर और सुखी बना सकते हैं।
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यहां प्रस्तुत कुछ विद्याएं तो सामान्य है जिनको थोड़े से ही प्रयास से हासिल किया जा सकता है लेकिन कुछ तो बहुत ही कठिन है। हालांकि दोनों ही तरह की विद्याओं के बारे में किसी योग्य जानकार या गुरु के सानिध्य में रहकर ही यह विद्या सिखना चाहिए। शुरुआती 12 विद्याएं तो सामान्य है आप बस उन्हें ही जानकर और उन पर अमल करके अपने जीवन का संकट मुक्त और सुखी बना सकते हैं।
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आत्मबल की शक्ति : योग साधना करें या जीवन का और कोई कर्म करें। आत्मबल की शक्ति या कहें कि मानसिक शक्ति का सुदृढ़ होना जरूरी है तभी हर कार्य में आसानी से सफलता मिल सकती है। आत्मबल की शक्ति इतनी शक्तिशाली रहती है कि कभी-कभी व्यक्ति की आंखों में झांककर ही उसका आत्मबल तोड़ दिया जाता है।
कैसे प्राप्त होती है आत्मबल की शक्ति : यम और नियम का पालन करने के अलावा मैत्री, मुदिता, करुणा और उपेक्षा आदि पर संयम करने से आत्मबल की शक्ति प्राप्त होती है।
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उपवास सिद्धि : कंठ के कूप में संयम करने पर भूख और प्यास की निवृत्ति हो जाती है अर्थात भूख और प्यास नहीं लगती। इसे कुछ क्षेत्रों में हाड़ी विद्या भी कहते हैं। यह विद्या पौराणिक पुस्तकों में मिलती है। इस विद्या को प्राप्त करने पर व्यक्ति को भूख और प्यास की अनुभूति नहीं होती है और वह बिना खाए- पिए बहुत दिनों तक रह सकता है।
कंठ की कूर्मनाड़ी में संयम करने पर स्थिरता व अनाहार सिद्धि होती है। कंठ कूप में कच्छप आकृति की एक नाड़ी है। उसको कूर्मनाड़ी कहते हैं। कंठ के छिद्र, जिसके माध्यम से पेट में वायु और आहार आदि जाते हैं, को कंठकूप कहते हैं। कंठ के इस कूप और नाड़ी के कारण ही भूख और प्यास का अहसास होता है।
स्थिरता शक्ति
: मन, शरीर या मस्तिष्क किसी कारणवश बेचैन रहता है। मानसिक तनाव के कारण भी शरीर और मन में अस्थिरता बनी रहती है। शरीर और चित्त की स्थिरता आवश्यक है अन्यथा जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में असफलता तो मिलती ही है, अन्य तरह की विद्याओं में भी गति नहीं हो सकती।
कैसे पाएं स्थिरता की शक्ति : कूर्मनाड़ी में संयम करने पर स्थिरता होती है। कंठ कूप में कच्छप आकृति की एक नाड़ी है। उसको कूर्मनाड़ी कहते हैं। कंठ के छिद्र जिसके माध्यम से उदर में वायु और आहार आदि जाते हैं, उसे कंठकूप कहते हैं।
छोटा सा प्रयोग : सिद्धासन में बैठकर आंखें बंद करें। अब अपनी जीभ को एकदम से स्थिर कर लें। दूसरा आप जीभ को तालू से चिपकाकर भी ध्यान कर सकते हैं
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उदान शक्ति : उदान वायु के जीतने पर योगी को जल, कीचड़ और कंकर तथा कांटे आदि पदार्थों का स्पर्श नहीं होता और मृत्यु भी वश में हो जाती है।
कैसे सिद्ध करें उदान वायु को : कंठ से लेकर सिर तक जो व्यापक है वही उदान वायु है। प्राणायाम द्वारा इस वायु को साधकर यह सिद्धि प्राप्त की जा सकती है। उदान वायु के सिद्ध होने पर व्यक्ति की उम्र लंबी होने लगती है, आंखों की ज्योति भी बढ़ती है, श्रवण इंद्रियां भी मजबूत हो जाती हैं।
भाषा सिद्धि : आजकल बहुत तरह की भाषा का ज्ञान जरूरी है। भाषा के ज्ञान से ही आपके ज्ञान का बहुत तेजी से विस्तार होता है। व्यक्ति को कम से कम 5 भाषाओं का ज्ञान होना चाहिए। मनुष्यों की भाषा तो ठीक है, लेकिन यदि आपको सभी प्राणियों की भाषा का भी ज्ञान होने लगते है
कैसे प्राप्त करें भाषा सिद्धि : हमारे मस्तिष्क की क्षमता अनंत है। शब्द, अर्थ और ज्ञान में जो घनिष्ठ संबंध है उसके विभागों पर संयम करने से ‘सब प्राणियों की वाणी का ज्ञान’ हो जाता है अर्थात ध्वनि पर संयम करने से उसके अर्थों को जाना जा सकता है।
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समुदाय ज्ञान शक्ति : शरीर के भीतर और बाहर की स्थिति का ज्ञान होना आवश्यक है। इससे शरीर को दीर्घकाल तक स्वस्थ और जवान बनाए रखने में मदद मिलती है।
कैसे प्राप्त करें यह विद्या : नाभि चक्र पर संयम करने से योगी को शरीर स्थित समुदायों का ज्ञान हो जाता है अर्थात कौन-सी कुंडली और चक्र कहां है तथा शरीर के अन्य अवयव या अंग की स्थिति कैसी है, इस तरह का ज्ञान होने पर व्यक्ति खुद ही शरीर को स्वस्थ करने में सक्षम हो जाता है।
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तेजपुंज शक्ति : तेजपुंज शक्ति को प्राप्त करने के बाद व्यक्ति का शरीर सोने जैसा दमकने लगता है। वह पूर्ण रूप से स्वस्थ रहकर अच्छी अनुभूति का अहसास करता है।
कैसे प्राप्त करें यह विद्या : समान वायु को वश में करने से योगी का शरीर ज्योतिर्मय हो जाता है। नाभि के चारों ओर दूर तक व्याप्त वायु को समान वायु कहते हैं। इस वायु पर योगासन, प्राणायाम और ध्यान द्वारा संयम किया जा सकता है।
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चित्त ज्ञान शक्ति : नए और पुराने नकारात्मक भाव और विचार हमारे चित्त की वृत्तियां बन जाते हैं जिनका शरीर और मन पर बुरा प्रभाव पड़ता है।
कैसे प्राप्त करें : हृदय में संयम करने से योगी को चित्त का ज्ञान होता है। चित्त में ही नए-पुराने सभी तरह के संस्कार और स्मृतियां होती हैं। चित्त का ज्ञान होने से चित्त की शक्ति का पता चलता है।
चित्त ज्ञान शक्ति : नए और पुराने नकारात्मक भाव और विचार हमारे चित्त की वृत्तियां बन जाते हैं जिनका शरीर और मन पर बुरा प्रभाव पड़ता है।
कैसे प्राप्त करें : हृदय में संयम करने से योगी को चित्त का ज्ञान होता है। चित्त में ही नए-पुराने सभी तरह के संस्कार और स्मृतियां होती हैं। चित्त का ज्ञान होने से चित्त की शक्ति का पता चलता है।
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कर्म सिद्धि : सोपक्रम और निरपक्रम- इन 2 तरह के कर्मों पर संयम से मृत्यु का ज्ञान हो जाता है। सोपक्रम अर्थात ऐसे कर्म जिसका फल तुरंत ही मिलता है और निरपक्रम जिसका फल मिलने में देरी होती है।
कैसे प्राप्त हो यह सिद्धि : क्रिया, बंध, नेती और धौती कर्म से कर्मों की निष्पत्ति हो जाती है और भूत तथा भविष्य का ज्ञान हो जाता है
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काड़ी विद्या : इस विद्या को प्राप्त करने पर कोई व्यक्ति ऋतुओं (बरसात, सर्दी, गर्मी आदि) के बदलाव से प्रभावित नहीं होता है। इस विद्या की प्राप्ति के बाद चाहे वह व्यक्ति बर्फीले पहाड़ों पर बैठ जाए, पर उसको ठंड नहीं लगेगी और यदि वह अग्नि में भी बैठ जाए तो उसे गर्माहट की अनुभूति नहीं होगी।
कैसे प्राप्त करें : हठयोग की क्रियाओं और प्राणायाम को साधने से यह विद्या सहज ही प्राप्त हो जाती है।
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निरोध परिणाम सिद्धि : इंद्रिय संस्कारों का निरोध कर उस पर संयम करने से ‘निरोध परिणाम सिद्धि’ प्राप्त होती है। यह योग साधक या सिद्धि प्राप्त करने के इच्छुक के लिए जरूरी है अन्यथा आगे नहीं बढ़ा जा सकता।
निरोध परिणाम सिद्धि प्राप्ति का अर्थ है कि अब आपके चित्त में चंचलता नहीं रही। निश्चल अकंप चित्त में ही सिद्धियों का अवतरण होता है। इसके लिए अपने विचारों और श्वासों पर लगातार ध्यान रखें। विचारों को देखते रहने से वे कम होने लगते हैं। विचारशून्य मनुष्य ही स्थिर चित्त होता है।
मन को भांपना : इस शक्ति को योग में मन:शक्ति योग कहते हैं। इसके अभ्यास से दूसरों के मन की बातें जानी जा सकती हैं। ज्ञान की स्थिति में संयम होने पर दूसरे के चित्त का ज्ञान होता है। यदि चित्त शांत है तो दूसरे के मन का हाल जानने की शक्ति हासिल हो जाएगी।
ज्ञान की स्थिति में संयम का अर्थ है कि जो भी सोचा या समझा जा रहा है, उसमें साक्षी रहने की स्थिति। ध्यान से देखने और सुनने की क्षमता बढ़ाएंगे तो सामने वाले के मन की आवाज भी सुनाई देगी। इसके लिए नियमित अभ्यास की आवश्यकता है।
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अंतर्ध्यान शक्ति : इसे आप गायब होने की शक्ति भी कह सकते हैं। विज्ञान अभी इस तरह की शक्ति पर काम कर रहा है। हो सकता है कि आने वाले समय में व्यक्ति गायब होने की कोई तकनीकी शक्ति प्राप्त कर ले।
योग अनुसार कायागत रूप पर संयम करने से योगी अंतर्ध्यान हो जाता है। फिर कोई उक्त योगी के शब्द, स्पर्श, गंध, रूप, रस को जान नहीं सकता। संयम करने का अर्थ होता है कि काबू में करना हर उस शक्ति को, जो अपन मन से उपजती है।
यदि यह कल्पना लगातार की जाए कि मैं लोगों को दिखाई नहीं दे रहा हूं तो यह संभव होने लगेगा। कल्पना यह भी की जा सकती है कि मेरा शरीर पारदर्शी कांच के समान बन गया है या उसे सूक्ष्म शरीर ने ढांक लिया है। यह धारणा की शक्ति का खेल है। भगवान शंकर कहते हैं कि कल्पना से कुछ भी हासिल किया जा सकता है। कल्पना की शक्ति को पहचानें।
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पुर्व जन्म को जानना : जब चित्त स्थिर हो जाए अर्थात मन भटकना छोड़कर एकाग्र होकर श्वासों में ही स्थिर रहने लगे, तब जाति स्मरण का प्रयोग करना चाहिए। जाति स्मरण के प्रयोग के लिए ध्यान को जारी रखते हुए आप जब भी बिस्तर पर सोने जाएं, तब आंखें बंद करके उल्टे क्रम में अपनी दिनचर्या के घटनाक्रम को याद करें। जैसे सोने से पूर्व आप क्या कर रहे थे, फिर उससे पूर्व क्या कर रहे थे, तब इस तरह की स्मृतियों को सुबह उठने तक ले जाएं।
पुर्व जन्म को जानना : जब चित्त स्थिर हो जाए अर्थात मन भटकना छोड़कर एकाग्र होकर श्वासों में ही स्थिर रहने लगे, तब जाति स्मरण का प्रयोग करना चाहिए। जाति स्मरण के प्रयोग के लिए ध्यान को जारी रखते हुए आप जब भी बिस्तर पर सोने जाएं, तब आंखें बंद करके उल्टे क्रम में अपनी दिनचर्या के घटनाक्रम को याद करें। जैसे सोने से पूर्व आप क्या कर रहे थे, फिर उससे पूर्व क्या कर रहे थे, तब इस तरह की स्मृतियों को सुबह उठने तक ले जाएं।
दिनचर्या का क्रम सतत जारी रखते हुए ‘मेमोरी रिवर्स’ को बढ़ाते जाएं। ध्यान के साथ इस जाति स्मरण का अभ्यास जारी रखने से कुछ माह बाद जहां मेमोरी पॉवर बढ़ेगा, वहीं नए-नए अनुभवों के साथ पिछले जन्म को जानने का द्वार भी खुलने लगेगा। जैन धर्म में जाति स्मरण के ज्ञान पर विस्तार से उल्लेख मिलता है।
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दिव्य श्रवण शक्ति : समस्त स्रोत और शब्दों को आकाश ग्रहण कर लेता है, वे सारी ध्वनियां आकाश में विद्यमान हैं। आकाश से ही हमारे रेडियो या टेलीविजन ये शब्द पकड़कर उसे पुन: प्रसारित करते हैं। कर्ण-इंद्रियां और आकाश के संबंध पर संयम करने से योगी दिव्य श्रवण को प्राप्त होता है।
अर्थात यदि हम लगातार ध्यान करते हुए अपने आसपास की ध्वनि को सुनने की क्षमता बढ़ाते जाएं और सूक्ष्म आयाम की ध्वनियों को सुनने का प्रयास करें तो योग और टेलीपैथिक विद्या द्वारा यह सिद्धि प्राप्त की जा सकती है।
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कपाल सिद्धि : सूक्ष्म जगत को देखने की सिद्धि को कपाल सिद्धि योग कहते हैं। कपाल की ज्योति में संयम करने से योगी को सिद्धगणों के दर्शन होते हैं। मस्तक के भीतर कपाल के नीचे एक छिद्र है, उसे ब्रह्मरंध्र कहते हैं।
ब्रह्मरंध्र के जाग्रत होने से व्यक्ति में सूक्ष्म जगत को देखने की क्षमता आ जाती है। हालांकि आत्म-सम्मोहन योग द्वारा भी ऐसा किया जा सकता है। बस जरूरत है तो नियमित प्राणायाम और ध्यान की। दोनों को नियमित करते रहने से साक्षीभाव गहराता जाएगा, तब स्थिर चित्त से ही सूक्ष्म जगत देखने की क्षमता हासिल की जा सकती
प्रतिभ शक्ति : प्रतिभ में संयम करने से योगी को संपूर्ण ज्ञान की प्राप्ति होती है। ध्यान या योगाभ्यास करते समय भृकुटि के मध्य तेजोमय तारा नजर आता है, उसे ही प्रतिभ कहते हैं। इसके सिद्ध होने से व्यक्ति को अतीत, अनागत, विप्रकृष्ट और सूक्ष्मातिसूक्ष्म पदार्थों का ज्ञान हो जाता है।
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ज्योतिष शक्ति : ज्योति का अर्थ है प्रकाश अर्थात प्रकाशस्वरूप ज्ञान। ज्योतिष का अर्थ होता है सितारों का संदेश। संपूर्ण ब्रह्मांड ज्योतिस्वरूप है। ज्योतिष्मती प्रकृति के प्रकाश को सूक्ष्मादि वस्तुओं में न्यस्त कर उस पर संयम करने से योगी को सूक्ष्म, गुप्त और दूरस्थ पदार्थों का ज्ञान हो जाता है।
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संछिप्त परिचय
कनकघरा विद्या- इस सिद्धि के द्वारा कोई भी असीम धन प्राप्त कर सकता है।
* लोक ज्ञान शक्ति : सूर्य पर संयम से सूक्ष्म और स्थूल सभी तरह के लोकों का ज्ञान हो जाता है।
* नक्षत्र ज्ञान सिद्धि : चंद्रमा पर संयम से सभी नक्षत्रों का पता लगाने की शक्ति प्राप्त होती है।
* इंद्रिय शक्ति : ग्रहण, स्वरूप, अस्मिता, अन्वय और अर्थवत्तव नामक इंद्रियों की 5 वृत्तियों पर संयम करने से इंद्रियों का ज्ञान हो जाता है।
* पुरुष ज्ञान शक्ति : बुद्धि पुरुष से पृथक है। इन दोनों के अभिन्न ज्ञान से भोग की प्राप्ति होती है। अहंकारशून्य चित्त के प्रतिबिंब में संयम करने से पुरुष का ज्ञान होता है।
* तारा ज्ञान सिद्धि : ध्रुव तारा हमारी आकाशगंगा का केंद्र माना जाता है। आकाशगंगा में अरबों तारे हैं। ध्रुव पर संयम से समस्त तारों की गति का ज्ञान हो जाता है।
* पंचभूत सिद्धि : पंचतत्वों के स्थूल, स्वरूप, सूक्ष्म, अन्वय और अर्थवत्तव ये 5 अवस्थाएं हैं इसमें संयम करने से भूतों पर विजय लाभ होता है। इसी से अष्ट सिद्धियों की प्राप्ति होती है।
पीलिया झाड़नेका ,
…………… जिसको पीलिया हुआ है उसके सर पे कांसे की कटोरी में तिलका तेल रखे और कुशासे उस तेल को चलाते हुए नीचे लिखे मन्त्र को सात बार लगातार तीन दिन तक पढ़े। …………. “ॐ नमो वीर बेताल कराल ,नारसिंहदेव ,नार कहे तू देव खादी तू बादी,पीलिया कूंभिदाती,कारै-झारै पीलिया रहै न एक निशान ,जो कहीं रह जाय तो हनुमंत जातिकी आन। मेरी भक्ति, गुरु की शक्ति,फुरो मन्त्र ,ईश्वरो वाचा।” ………………
२। … आधा सर दर्द [माइग्रेन ]मिटाने का ………………………”वन में ब्याई अंजनी ,कच्चे बन फूल खाय। हाक मारी हनुमंत ने इस पिंड से आधा सीस उतर जाय। ”
३। …लकवा ठीक करने का मन्त्र। ………. ॐ नमो गुरुदेवाय नम:. ॐ नमो उस्ताद गुरु कूं ,ॐ नमो आदेश गुरु कूं ,जमीन आसमान कूं ,आदेश पवन पाणी कूं ,आदेश चन्द्र -सूरज कूं ,आदेश नव नाथ चौरासी सिद्ध कूं ,आदेश गूंगी देवी ,बहरी देवी ,लूली देवी ,पांगुलीदेवी ,आकाश देवी ,पटल देवी ,उलूकणीदेवी ,पूंकणीदेवी ,टुंकटुकीदेवी ,आटीदेवी ,चन्द्र -गेहलीदेवी ,हनुमान जाति अन्जनीका पूत ,पवन का न्याती ,वज्र का कांच वज्र का लंगोटा ज्यूँ चले ज्यूँ चल ,हनुमान जाति की गदा चले ज्यूँ चल ,राजा रामचन्द्र का बाण चले ज्यूँ चल,गंगा जमुना का नीर चले ज्यूँ चल ,कुम्हार को चाक चले ज्यूँ चल गुरु की शक्ति ,हमारी भक्ति ,चलो मन्त्र ईश्वरो वाचा। …… ४ सर्व रोग मारक शिव मन्त्र ,…………वन में बैठी वानरी अंजनी जायो हनुमंत ,बाला डमरू ब्याही बिलाई आँख की पीड़ा ,मस्तक पीड़ा ,चौरासी ,वाई ,बली -बली भस्म हो जाय ,पके न फूटे ,पीड़ा करे ,तो गोरखजाति रक्षा करे गुरु की शक्ति मेरी भक्ति ,फुरो मन्त्र ,ईश्वरो वाचा। ……………………।
५ बिच्छूका डंक उतरना , ……………… ”ॐ नमो आदेश गुरु का ,काला बिच्छू कंकरीयाला ,सोना का डंक ,रुपे का भाला,उतरे तो उतारूँ ,चढ़े तो मारूं।नीलकंठ मोर ,गरुड़ का आयेगा ,मोर खायेगा तोड़ ,जा रे बिच्छू डंक छोड़ ,मेरी भक्ति ,गुरु की शक्ति फुरो मन्त्र ,ईश्वरो वाचा। ………. इस मन्त्र का १०८ झाडा नीम की डाल का लगाना है। ……………………… सर्प के विष को उता रने के कई सारे मन्त्र हैं मैं एक लिख रही हूँ , ………………. ॐ नमो पर्वताग्रे रथो आंती,विटबड़ा कोटि तन्य बीरडर पंचनशपनं पुरमुरी अंसडी तनय तक्षक नागिनी आण,रुद्रिणी आण,गरुड़ की आण। शेषनाग की आण ,विष उड़नति,फुरु फुरु फुरु ॐ डाकू रडती ,भरडा भरडती विष तू दंती उदकान ”….
६.…. नजर उतारने का मन्त्र। ……………”ॐ नमो सत्य नाम आदेश गुरु को ,ॐ नमो नजर जहाँ पर पीर न जानि ,बोले छल सों अमृत बानी। कहो कहाँ ते आयी ,यहाँ की ठौर तोहे कौन बताई। कौन जात तेरी का ठाम,किसकी बेटी कहो तेरो नाम ,कहाँ से उड़ीकहाँ को जाया ,अब ही बस करले तेरी माया।मेरी बात सुनो चित्त लगाय,जैसी होय सुनाऊँ आय। तेलन तमोलन चुहडी चमारी ,काय थनी ,खतरानी कुम्हारी। महतरानी,राजा की रानी ,जाको दोष ताहि सर पे पड़े ,हनुमत वीर नजर से रक्षा करे। मेरी भक्ति ,गुरु की शक्ति फुरो मन्त्र ,ईश्वरो वाचा।” …
.श्री भैरव मन्त्र
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“ॐ गुरुजी काला भैरुँ कपिला केश, काना मदरा, भगवाँ भेस। मार-मार काली-पुत्र। बारह कोस की मार, भूताँ हात कलेजी खूँहा गेडिया। जहाँ जाऊँ भैरुँ साथ। बारह कोस की रिद्धि ल्यावो। चौबीस कोस की सिद्धि ल्यावो। सूती होय, तो जगाय ल्यावो। बैठा होय, तो उठाय ल्यावो। अनन्त केसर की भारी ल्यावो। गौरा-पार्वती की विछिया ल्यावो। गेल्याँ की रस्तान मोह, कुवे की पणिहारी मोह, बैठा बाणिया मोह, घर बैठी बणियानी मोह, राजा की रजवाड़ मोह, महिला बैठी रानी मोह। डाकिनी को, शाकिनी को, भूतनी को, पलीतनी को, ओपरी को, पराई को, लाग कूँ, लपट कूँ, धूम कूँ, धक्का कूँ, पलीया कूँ, चौड़ कूँ, चौगट कूँ, काचा कूँ, कलवा कूँ, भूत कूँ, पलीत कूँ, जिन कूँ, राक्षस कूँ, बरियों से बरी कर दे। नजराँ जड़ दे ताला, इत्ता भैरव नहीं करे, तो पिता महादेव की जटा तोड़ तागड़ी करे, माता पार्वती का चीर फाड़ लँगोट करे। चल डाकिनी, शाकिनी, चौडूँ मैला बाकरा, देस्यूँ मद की धार, भरी सभा में द्यूँ आने में कहाँ लगाई बार ? खप्पर में खाय, मसान में लौटे, ऐसे काला भैरुँ की कूण पूजा मेटे। राजा मेटे राज से जाय, प्रजा मेटे दूध-पूत से जाय, जोगी मेटे ध्यान से जाय। शब्द साँचा, ब्रह्म वाचा, चलो मन्त्र ईश्वरो वाचा।”
विधिः-
~
उक्त मन्त्र का अनुष्ठान रविवार से प्रारम्भ करें। एक पत्थर का तीन कोनेवाला टुकड़ा लिकर उसे अपने सामने स्थापित करें। उसके ऊपर तेल और सिन्दूर का लेप करें। पान और नारियल भेंट में चढावें। वहाँ नित्य सरसों के तेल का दीपक जलावें। अच्छा होगा कि दीपक अखण्ड हो। मन्त्र को नित्य २१ बार ४१ दिन तक जपें। जप के बाद नित्य छार, छरीला, कपूर, केशर और लौंग की आहुति दें। भोग में बाकला, बाटी बाकला रखें (विकल्प में उड़द के पकोड़े, बेसन के लड्डू और गुड़-मिले दूध की बलि दें। मन्त्र में वर्णित सब कार्यों में यह मन्त्र काम करता है।
दुर्गा शाबर मन्त्र
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“ॐ ह्रीं श्रीं चामुण्डा सिंह वाहिनीं बीस हस्ती भगवती, रत्न मण्डित सोनन की माल। उत्तर पथ में आन बैठी, हाथ सिद्ध वाचा ऋद्धि-सिद्धि। धन-धान्य देहि देहि, कुरू कुरू स्वाहा।”
विधि-
~
उक्त मन्त्र का सवा लाख जप कर सिद्ध कर लें। फिर आवश्यकतानुसार श्रद्धा से एक माला जप करने से सभी कार्य सिद्ध होते हैं। लक्ष्मी प्राप्त होती है। नौकरी में उन्नति और व्यवसाय में वृद्धि होती है।
अघोर शाबर मन्त्र
मन्त्रः-
“ॐ नमो आदेश गुरु । घोर-घोर, काजी की कुरान घोर, मुल्ला की बांग घोर, रेगर की कुण्ड घोर, धोबी की चूण्ड घोर, पीपल का पान घोर, देव की दीवाल घोर । आपकी घोर बिखेरता चल, पर की घोर बैठाता चल । वज्र का कीवाड़ जोड़ता चल, सार का कीवाड़ तोड़ता चल । कुण-कुण को बन्द करता चल-भूत को, पलीत को, देव को, दानव को, दुष्ट को, मुष्ठ को, चोट को, फेट को, मेले को, धरले को, उलके को, बुलके को, हिड़के को, भिड़के को, ओपरी को, पराई को, भूतनी को, डंकनी को, सियारी को, भूचरी को, खेचरी को, कलुवे को, मलवे को, उन को, मतवाय को, ताप को, पीड़ा को, साँस को, काँस को, मरे को, मुसाण को । कुण-कुण-सा मुसाण – काचिया मुसाण, भुकिया मुसाण, कीटिया मुसाण, चीड़ी चोपड़ा का मुसाण, नुहिया मुसाण – इन्हीं को बन्ध कर, ऐड़ो की ऐड़ी बन्द कर, जाँघ की जाड़ी बन्द कर, कटि की कड़ी बन्द कर, पेट की पीड़ा बन्द कर, छाती को शूल बन्द कर, सर की सीस बन्द कर, चोटी की चोटी बन्द कर । नौ नाड़ी, बहत्तर रोम-रोम में, घर-पिण्ड में दखल कर । देश बंगाल का मनसा राम सेबड़ा आकर मेरा काम सिद्ध न करे, तो गुरु उस्ताद से लाजे । शब्द सांचा, पिण्ड काचा, फुरो मन्त्र , ईश्वरो वाचा ।”
विधि व फलः-
रविवार के दिन सायं-काल भगवान् शिव के मन्दिर में जाकर सुगन्धित तेल का दीपक जलाकर लोबान-गूगल का धूप करें और नैवेद्य अर्पित करें । किसी धूणे या शिव-मन्दिर के साधु को गाँजे या तम्बाकू से भरी एक चिलम भेंट करें । तदुपरान्त मन्त्र का २७ बार जप करे । यह जप २७ दिनों तक नियमित रुप से करना चाहिए । फिर आवश्यकता पड़ने पर अर्थात् मन्त्र में वर्णित कोई रोग-बाधा दूर करने हेतु पीड़ित व्यक्ति को लोहे की छुरी या मोर-पंख से सात बार मन्त्र पढ़ते हुए झाड़ना चाहिए । इससे रोगी का रोग शान्त होता है । यह क्रिया तीन दिन तक प्रातः और सायं-काल करने से रोगी पूर्ण स्वस्थ हो जाता है ।
मंत्र इस तरह है
ॐ गुरु ॐ गुरु ॐ गुरु ॐ-कार ! ॐ गुरु भु-मसान, ॐ गुरु सत्य गुरु, सत्य नाम काल भैरव कामरु जटा चार पहर खोले चोपटा, बैठे नगर में सुमरो तोय दृष्टि बाँध दे सबकी । मोय हनुमान बसे हथेली । भैरव बसे कपाल । नरसिंह जी की मोहिनी मोहे सकल संसार । भूत मोहूँ, प्रेत मोहूँ, जिन्द मोहूँ, मसान मोहूँ, घर का मोहूँ, बाहर का मोहूँ, बम-रक्कस मोहूँ, कोढ़ा मोहूँ, अघोरी मोहूँ, दूती मोहूँ, दुमनी मोहूँ, नगर मोहूँ, घेरा मोहूँ, जादू-टोना मोहूँ, डंकणी मोहूँ, संकणी मोहूँ, रात का बटोही मोहूँ, पनघट की पनिहारी मोहूँ, इन्द्र का इन्द्रासन मोहूँ, गद्दी बैठा राजा मोहूँ, गद्दी बैठा बणिया मोहूँ, आसन बैठा योगी मोहूँ, और को देखे जले-भुने मोय देखके पायन परे। जो कोई काटे मेरा वाचा अंधा कर, लूला कर, सिड़ी वोरा कर, अग्नि में जलाय दे, धरी को बताय दे, गढ़ी बताय दे, हाथ को बताय दे, गाँव को बताय दे, खोए को मिलाए दे, रुठे को मनाय दे, दुष्ट को सताय दे, मित्रों को बढ़ाए दे । वाचा छोड़ कुवाचा चले, माता क चोंखा दूध हराम करे । हनुमान की आण, गुरुन को प्रणाम । ब्रह्मा-विष्णु साख भरे, उनको भी सलाम । लोना चमारी की आण, माता गौरा पारवती महादेव जी की आण । गुरु गोरखनाथ की आण, सीता-रामचन्द्र की आण । मेरी भक्ति, गुरु की शक्ति । गुरु के वचन से चले, तो मन्त्र ईश्वरो वाचा ।”
ॐ
लघु सरल अनुभूत प्रयोग।।
- व्यापर वृद्धि के लिए व्यक्ति को अपने व्यापर स्थान पर एक
अमरबेल लगानी चाहिए । उसे रोज पानी देना चाहिए तथा
अगरबत्ती दिखा कर कोई भी लक्ष्मी मंत्र का जाप करने पर,
उस लक्ष्मी मंत्र का प्रभाव बढ़ता है ॥
- किसी भी प्रकार की औषधि लेने से पूर्व उसे अपने सामने रख
कर 108 बार निम्न मंत्र का जाप कर लिया जाए और उसके बाद
उसको सेवन के लिए उपयोग किया जाए तो उसका प्रभाव बढ़ता है ।
॥ धनवन्तरि सर्वोष धि सिद्धिं कुरु कुरु नमः ॥
- हाथी दांत का टुकड़ा अपने आप मे महत्वपूर्ण है । किसी भी
शुक्रवार की रात्री को उस पर कुंकुम से ‘श्रीं’ लिख कर श्रीसूक्त
के यथा संभव पाठ करे । इसके बाद उसे लाल कपडे मे लपेट
कर तिजोरी मे रख देने पर निरंतर लक्ष्मी कृपा बनी रहती है ॥
- सूर्य को अर्ध्य देना अत्यंत ही शुभ है । अर्ध्य जल अर्पित करने
से पूर्व 7 बार गायत्री का जाप कर अर्पित करने से आतंरिक चेतना
का विकास होता है ॥
- घर के मुख्य द्वार के सामने सीधे ही आइना ना रखे । इससे लक्ष्मी सबंधित समस्या किसी न किसी रूप मे बनी रहती है,
अतः इस चीज़ का ध्यान रखना चाहिए ॥
जिस भवन में बिल्लियां प्राय: लड़ती रहती हैं वहां शीघ्र ही विघटन की संभावना रहती है, विवाद वृद्धि होती है, मतभेद होता है।
* जिस भवन के द्वार पर आकर गाय जोर से रंभाए तो निश्चय ही उस घर के सुख में वृद्धि होती है।
* भवन के सम्मुख कोई कुत्ता भवन की ओर मुख करके रोए तो निश्चय ही घर में कोई विपत्ति आने वाली है अथवा किसी की मृत्यु होने वाली है।
* जिस घर में काली चींटियां समूहबद्ध होकर घूमती हों वहां ऐश्वर्य वृद्धि होती है, किंतु मतभेद भी होते हैं।
* घर में प्राकृतिक रूप से कबूतरों का वास शुभ होता है।
* घर में मकड़ी के जाले नहीं होने चाहिएं, ये शुभ नहीं होते, सकारात्मक ऊर्जा को रोकते हैं।
* घर की सीमा में मयूर का रहना या आना शुभ होता है।
* जिस घर में बिच्छू कतार बनाकर बाहर जाते हुए दिखाई दें तो समझ लेना चाहिए कि वहां से लक्ष्मी जाने की तैयारी कर रही हैं।
* पीला बिच्छू माया का प्रतीक है। ऐसा बिच्छू घर में निकले तो घर में लक्ष्मी का आगमन होता है।
* जिस घर में प्राय: बिल्लियां विष्ठा कर जाती हैं, वहां कुछ शुभत्व के लक्षण प्रकट होते हैं।
* घर में चमगादड़ों का वास अशुभ है।
* जिस भवन में छछूंदरें घूमती हैं वहां लक्ष्मी की वृद्धि होती है।
* जिस घर के द्वार पर हाथी अपनी सूंड ऊंची करे वहां उन्नति, वृद्धि तथा मंगल होने की सूचना मिलती है।
* जिस घर में काले चूहों की संख्या अधिक हो जाती है वहां किसी व्याधि के अचानक होने का अंदेशा रहता है।
* जिस घर की छत या मुंडेर पर कोयल या सोन चिरैया चहचहाए, वहां निश्चित ही श्री वृद्धि होती है।
* जिस घर के आंगन में कोई पक्षी घायल होकर गिरे वहां दुर्घटना होती है।
* जिस भवन की छत पर कौए, टिटहरी अथवा उल्लू बोलने लगें तो, वहां किसी समस्या का उदय अचानक होता है।
रत्न, रुद्राक्ष व वास्तु सलाहकार हर प्रकार की असली समग्री गिदड़ सिंधी बिल्ली की जेर काले घोड़े की नाल नव रत्न, रुद्राक्ष, शंख,हकीक, श्वेत आर्क/हल्दी गणपति, पारा शिवलिंग, तंत्र व यंत्र सामान मंगवाने के लिए संपर्क करें।
नमस्कार दोस्तों।
”भारतीय ज्योतिष में प्रश्न एवं जन्म कुण्डली में पैतृक दोष निर्णय एवं निदान ‘
यदि हमारे पूर्वजों ने किसी प्रकार के अशुभ कार्य किये हों एवं अनैतिक रूप से धन एकत्रित किया होता है, तो उसके दुष्परिणाम आने वाली पीढ़ियों को भुगतने पड़ते हैं, क्योंकि आगे आने वाली पीढ़ियों के भी कुछ ऐसे अशुभ कर्म होते हैं कि वे उन्हीं पूर्वजों के यहां पैदा होते हैं। अतः पूर्वजों के कर्मों के फलस्वरूप आने वाली पीढ़ियों पर पड़ने वाले अशुभ प्रभाव को पैतृक दोष या पितृ-दोष कहा जाता है। जातक द्वारा इस जन्म या पूर्व जन्मों में किये गये गलत, अशुभ या पाप कर्म अर्थात् अधर्म का जातक को इस जन्म या अगले जन्म या जन्मों में परिणाम भोगना पड़ता है। यह जन्मपत्री में ‘पितृ दोष’ के रूप में उत्पन्न होता है। अतः इसकी पहचान अति आवश्यक है; ताकि जातक द्वारा किये गये अधर्म का पता लग जाये तथा उपाय द्वारा इसे सुधारा जा सके।
जातक के व परिवार जनों के जीवन-काल में अधोअंकित लक्षण- फल-प्रभाव परिलक्षित-दृष्टव्य होते हैं ।
असामयिक घटना दुर्घटना का होना, जन-धन की हानि होना। परिवार में अकारण लड़ाई-झगड़ा बना रहना। पति/तथा पत्नी वंश वृद्धि हेतु सक्षम न हों। आमदनी के स्रोत ठीक-ठाक होने तथा शिक्षित एवम् सुंदर होने के बावजूद विवाह का न हो पाना। बारंबार गर्भ की हानि (गर्भपात) होना। बच्चों की बीमारी लगातार बना रहना, नियत समय के पूर्व बच्चों का होना, बच्चों का जन्म होने के तीन वर्ष की अवधि के अंदर ही काल के गोद में समा जाना। दवा-दारू पर धन का अपव्यय होना। जातक व अन्य परिवार जनों को अकारण क्रोध का बढ़ जाना, चिड़चिड़ापन होना। परीक्षा में पूरी तैयारी करने के बावजूद भी असफल रहना, या परीक्षा-हाल में याद किए गए प्रश्नों के उत्तर भूल जाना, दिमाग शून्यवत हो जाना, शिक्षा पूर्ण न कर पाना। घर में वास्तु दोष सही कराने, गंडा-ताबीज बांधने, झाड़-फूंक कराने का भी कोई असर न होना। ऐसा प्रतीत होना कि सफलता व उन्नति के मार्ग अवरूद्ध हो गए हैं। जातक व उसके परिवार जनों का कुछ न कुछ अंतराल पर रोग ग्रस्त रहना, किसी को दीर्घकालिक बीमारी का सामना करना, समुचित इलाज के बावजूद रोग का पकड़ में न आना। जातक या परिवार जनों को अपंगता, मूर्छा रोग, मिर्गी रोग मानसिक बीमारी का होना (कुछ स्थानों पर कुष्ठ रोग का होना) ।
सूर्य के कारण पितृ ऋण का दोष :-
सूर्य पापे संयुक्त: मानसागरी के अनुसार – ”सूर्य पाप ग्रह से युक्त हो या पाप कर्तरी योग में हो अर्थात् पाप ग्रह के मध्य हो अथवा सूर्य से सप्तम भाव में पाप ग्रह हो तो उसका पिता असामयिक मृत्यु प्राप्त करता है। यह एक पितृ दोष का कारण हैं। ”अर्थात् इस कथन का विवेचन यह स्पष्ट करता है कि सूर्य के लिये पाप ग्रह केवल शनि, राहु और केतु हैं। क्योंकि सूर्य तो स्वयं पाप व क्रूर ग्रह हैं तथा दूसरा अन्य पाप ग्रह मंगल हैं, जो सूर्य का मित्र हैं। इसलिये सूर्य एवं मंगल को पापत्व से मुक्त किया गया है। इसलिये सूर्य के साथ शनि, राहु एवं केतु हो तो पितृ दोष लगता है या पितृ ऋण चढ़ जाता है। यही पितृ दोष की पहचान भी है। सूर्यश्च पाप मध्यगत : सूर्य, यदि शनि, राहु और केतु के बीच में हो अर्थात् पूर्व ओर राहु, केतु, शनि हो। इससे पितृ दोष आ जाता है। सूर्य सप्तगम पाप : सूर्य से सप्तम स्थान पर पाप ग्रह हो अर्थात् सूर्य पाप ग्रह से दृष्ट हो तो पितृ दोष आ जाता है। क्योंकि सभी ग्रह (यानि राहु, केतु, शनि) अपने से सप्तम भाव या दृष्टि से देखते हैं। शनि की सप्तम के अलावा अन्य और दो दृष्टि -तृतीय एवं दशम होती है। अतः सूर्य से चतुर्थ, सप्तम और एकादश स्थान पर शनि के रहने से पितृ दोष लगता है जिससे जातक के ऊपर प…
महामृत्युंजय मंत्र के 8 विशेष प्रयोग –
ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात् ॥
मृत्युंजय का सीधा अर्थ है मृत्यु को भी विजय करने वाला, महामृत्युञजय मंत्र भगवान रूद्र का एक सर्वशक्तिशाली और साक्षात् प्रभाव देने वाला सिद्ध मंत्र है और अधिकांशतः लोग इससे परिचित भी हैं ही, समान्यतया अच्छे स्वास्थ के लिए, असाध्य रोगों से मुक्ति के लिए और अकाल मृत्यु-भय से रक्षा के लिए महामृत्युंजय मंत्र जाप किया जाता है या कर्मकाण्डी ब्राह्मण से इसका अनुष्ठान कराया जाता है पर महामृत्युंजय मंत्र का प्रयोग न केवल अकाल मृत्यु से रक्षा के लिए बल्कि आपके जीवन की और भी बहुतसी बाधाओं से मुक्ति देने में महामृत्युंजय मंत्र का जाप अपना चमत्कारिक प्रभाव दिखाता है –
- यदि आपका स्वास्थ समान्य से अधिक और हमेशा की खराब रहता है तो नित्य महामृत्युंजय मंत्र का जाप करें अवश्य लाभ होगा।
- बीमारी या रोगों के कारण जब जीवन संकट वाली स्थिति आ जाये तो महामृत्युंजय मंत्र का जाप करें या अनुष्ठान कराएं।
- जिन लोगों के साथ बार बार एक्सीडेंट्स की स्थिति बनती रहती हो ऐसे लोगो को महामृत्युंजय मंत्र का नित्य जाप करना बहुत सकारात्मक परिवर्तन लाता है।
- जिन लोगों को डर भय और फोबिया की समस्या हो ऐसे लोगों को महामृत्युंजय मंत्र का जाप करना बहुत शुभ परिणाम देता है।
- एक सफ़ेद कागज पर लाल पैन से महामृत्युंजय मंत्र लिखें एक दिन के लिए अपने पूजास्थल पर रखें और फिर हमेशा वाहन चलाते समय इसे अपने ऊपर वाले जेब में रखें दुर्घटनाओं से हमेशा आपकी रक्षा होगी।
- जिन लोगों की कुंडली में कालसर्प योग होने से जीवनं में संघर्ष रहता हो उनके लिए महामृत्युंजय मंत्र का जाप अमृत-तुल्य होता है।
- कुंडली में चन्द्रमाँ पीड़ित या कमजोर होने पर उत्पन्न होने वाली मानसिक समस्याओं में भी महामृत्युंजय मंत्र का जाप बहुत शुभ परिणाम देता है।
- महामृत्युंजय मंत्र की ध्वनि से घर से सभी “नकारात्मक” ऊर्जाएं दूर रहती हैं।
नमः शिवाय
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चोरी गया सामान ज्ञात करना
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कोई भी सामान खोना/चोरी होना आज
के समय मे सामान्य बात है। अंक विद्या में गुम हुई वस्तु के बारे में प्रश्र किया जाए तो उसका जवाब बहुत हद तक सच साबित होता है।
जैसे👇👇
सर्व प्रथम आप १ से १०८ के बीच का एक अंक मन मे सोचे।
और उस अंक को ९ से भाग दें। शेष जो अंक आये तो आगे लिखे अनुसार उसका
उत्तर होगा।
👉 शेष अंक १ ( सूर्य का अंक है )
पूर्व में मिलने की आशा है।
👉शेष अंक २ ( चंद्र का अंक है )
वस्तु किसी स्त्री के पास होने की
आशा है पर वापस नहीं मिलेगी।
👉शेष अंक ३ ( गुरु का अंक है )
वस्तु वापिस मिल जायेगी। मित्रों और परिवार के लोगों से पूछें।
👉शेष अंक ४ ( राहु का अंक है )
ढूढ़ने का प्रयास व्यर्थ है। वस्तु आप की
लापरवाही से खोई है।
👉शेष अंक ५ ( बुध का अंक है )
आप धैर्य रख्खें वस्तु वापस मिलने की आशा है।
👉 शेष अंक ६ ( शुक्र का अंक है )
वस्तु आप किसी को देकर भूल गए हैं।
घर के दक्षिण पूर्व या रसोई घर में ढूंढने की कोशिश करें।
👉शेष अंक ७ ( केतु का अंक है )
चिंता न करें खोई वस्तु मिल जायेगी।
👉शेष अंक ८ ( शनि का अंक है )
खोई वस्तु मिलने की आशा नहीं है। वस्तु को भूल जाएँ तो अच्छा है।
👉शेष अंक ९ या ० ( मंगल का अंक है )
यदि खोई वस्तु आज मिल गई तो ठीक अन्यथा मिलने की कोई आशा नहीं है।
उदाहरण :- के लिए अगर प्रश्नकर्ता ने ८३ अंक कहा है तो ८३ को ९ से भाग दें
८३÷९ = २
शेष आया २ जो चंन्द्र का अंक है।
वस्तु किसी स्त्री के पास है पर वापस प्राप्त नही होगीl खोये सामान की जानकारी मिलेगी अथवा नहीं मिलेगी? इसके लिए सभी नक्षत्रों को चार बराबर भागों में बाँट दिया गया है. एक भाग में सात नक्षत्र आते हैं. उन्हें अंध, मंद, मध्य तथा सुलोचन नाम दिया गया है. इन नक्षत्रों के अनुसार चोरी की वस्तु का दिशा ज्ञान तथा फल ज्ञान के विषय में जो जानकारी प्राप्त होती है वह एकदम सटीक होती है.
नक्षत्रों का लोचन ज्ञान
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अंध लोचन नक्षत्र
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रेवती, रोहिणी, पुष्य, उत्तराफाल्गुनी, विशाखा, पूर्वाषाढा़, धनिष्ठा.
मंद लोचन नक्षत्र
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अश्विनी, मृगशिरा, आश्लेषा, हस्त, अनुराधा, उत्तराषाढा़, शतभिषा.
मध्य लोचन नक्षत्र
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भरणी, आर्द्रा, मघा, चित्रा, ज्येष्ठा, अभिजित, पूर्वाभाद्रपद.
सुलोचन नक्षत्र नक्षत्र
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कृतिका, पुनर्वसु, पूर्वाफाल्गुनी, स्वाति, मूल, श्रवण, उत्तराभाद्रपद.
👉 यदि वस्तु अंध लोचन में खोई है तो वह पूर्व दिशा में शीघ्र मिल जाती है.
👉 यदि वस्तु मंद लोचन में गुम हुई है तो वह दक्षिण दिशा में होती है और गुम होने के 3-4 दिन बाद कष्ट से मिलती है.
👉यदि वस्तु मध्य लोचन में खोई है तो वह पश्चिम दिशा की ओर होती है और एक गुम होने के एक माह बाद उस वस्तु की जानकारी मिलती है. ढा़ई माह बाद उस वस्तु के मिलने की संभावना बनती है.
👉यदि वस्तु सुलोचन नक्षत्र में गुम हुई है तो वह उत्तर दिशा की ओर होती है. वस्तु की ना तो मिलती है।
गुम वस्तु की प्राप्ति हेतु दिव्य मंत्र
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जीवन में भूलना, गुमना, चले जाना, बलात ले लेना अथवा लेने के बाद कोई भी वस्तु वापस नहीं मिलना ऐसी घटनाएं स्वाभाविक रूप से घटित होती रहती है।
यदि आप का कोई भी सामान खो गया है या मिल नही रहा तो अपने पूजाघर मे
एक देशी घी का दीपक लगाकर पूर्व अथवा उत्तर दिशा की ओर मुंह करके बैठें। अपनी गुम वस्तु की कामना को उच्चारण कर भगवान विष्णु के सुदर्शन चक्रधारी रूप का ध्यान करें इस मंत्र का विश्वासपूर्वक जप 1008 बार करें।इससे गुम हुई वस्तु एवं अपना फसा धन प्राप्ति होने की सम्भावना प्रबल हो जाती हैl
मंत्र :-👉 ॐ ह्रीं कार्तविर्यार्जु…
🏪 किचन घर का सबसे अहम हिस्सा है। परिवार के हर सदस्य के दिल तक जाने का रास्ता यहीं से होकर गुजरता है। किसी को भी अपना बनाना हो तो उसे उसके मनपसंद पकवान खिलाने चाहिए। हिंदू शास्त्रों के अनुसार रसोई में देवी अन्नपूर्णा का वास होता है। उनकी कृपा से घर में अन्न के भंडार भरते हैं। अतः किचन में उनका चित्र अवश्य लगाना चाहिए। घर में जो भी बनाएं उन्हें भोग लगाकर प्रसाद स्वरुप सारे परिवार को खाना चाहिए। ऐसा करने से फैमिली के सभी सदस्य हेल्दी भी रहेंगे।
घर में हमेशा अन्न-धन का प्रवाह बना रहे इसके लिए देवी अन्नपूर्णा पर सूखा धनिया चढ़ाकर किचन में छुपाकर रखें।
🏨 अपने घर को सुरक्षा कवच पहनाने के लिए देवी अन्नपूर्णा पर नवधान चढ़ाकर पक्षियों को डालें।
मान-यश की प्राप्ति के लिए देवी अन्नपूर्णा पर चढ़ी मूंग की दाल गाय को खिलाएं।
फलों या सब्जियों से भरी टोकरी का चित्र लगाने से घर में खुशहाली बनी रहती है।
🏛 किचन का वास्तु दोष दूर करने के लिए रसोई के उत्तर-पूर्व में सिंदूरी गणेश जी का फोटो लगाएं।
धान, मूंग, गेहूं, सरसो, जौ, काले तिल और ज्वार को मिलकार पोटली बना लें। जितने कमरे हों सभी कमरे में एक पोटली रखें। माना जाता है कि यह सप्तधान्य घर में अन्न धन का भंडार बनाए रखने में सहायक होता है।
रसोई घर में चूल्हा पूर्व दिशा की ओर होना शुभ रहता है। चूल्हा दक्षिण दिशा में होने पर आर्थिक परेशानी आती है। माना जाता है कि व्यक्ति को भारी आर्थिक संकट का सामना करना पड़ता है।
👩👧👦 महिलाएं घर की अन्नपूर्णा होती हैं। उनके द्वारा बनाए गए स्वादिष्ट भोजन से ही परिवार का पालन-पोषण होता है। उन्हें कुछ बातों का ध्यान रखना चाहिए-
प्रतिदिन स्नान करके साफ और स्वच्छ वस्त्र पहन कर रसोई घर में प्रवेश करना चाहिए।
रसोई में भेद-भाव किए बिना समान रूप से सभी को भोजन परोसे। सभी सदस्यों को भोजन कराने के उपरांत घर की अन्नपूर्णा को भोजन करना चाहिए।
घर आए मेहमानों को खिला-पिला कर विदा करना चाहिए।
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यदि लड़कोँ के विवाह में देरी हो रही है तो, करें ये चमत्कारी उपाय :
जिन युवकोँ का विवाह नहीँ हो रहा वे किसी शुभ दिन माँ दुर्गा का मँदिर मेँ जाकर लहँगा चुनरी से श्रँगार करायेँ, श्रँगार सामग्री और दक्षिणा चढ़ाएँ। तत्पश्चात उसी साँय एक चौकी पर एक आधा मीटर सफेद वस्त्र बिछाकर उस पर एक पत्तल (पत्तोँ से बनी प्लेट) मेँ बूँदी के सात लड्डू, सात लौँग सात काली मिर्च, लाल मिर्च, सात बताशे व सात नमक की डली और सात रँग के फूल रखेँ । दीपक व गुगगुल की धूप जलाएँ और नीचे लिखे मँत्र की रूद्राक्ष माला पर 7 माला जप कर उपरोक्त सामग्री कपडे सहित सिर पर से सात बार उतार लेँ और जाकर चौराहे पर रख देँ। बिना पीछे देखे वापस घर आ जाएँ और हाथ मुँह धो लेँ।
ॐ नमो कामाख्या माई, ‘अमुक’ फौरन पत्नी पाये, तेरे बालक का घर बस जाए, बाधा कोई न आड़े आये, ग्रह बीच जो कोई अड़े, हनुमान की गदा पड़े, घर कन्या पाँय परैँ, अन्नपूर्णा भण्डार भरेँ, दुहाई ईश्वर महादेव गौरा पार्वती की, योगिनी कामरू कामाक्षा की, शब्द साँचा पिण्ड काँचा, फुरो मँत्र ईश्वरो वाचा।
अमुक के स्थान पर उस लड़के का नाम लिया जाएगा जिसके बिवाह मेँ विलँब हो रहा है।
{ ईश्वर की कृपा से कुछ ही सप्ताह मेँ अच्छे रिश्ते प्राप्त होँगे और जल्द विवाह होगा।}
दरिद्रता नाशक – “महालक्ष्मी स्तोत्र”
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एक समय इंद्र देव से किसी बात पर रूष्ट होकर देव गुरू ‘बृहस्पति’ स्वर्गलोक त्याग कर चले गए ! असुरों ने इस सुअवसर का लाभ उठाकर स्वर्गलोक पर आक्रमण कर दिया ! देवताओं तथा असुरों में युद्ध आरम्भ हो गया, जिसमें देवता पराजित हुए तथा असुरों ने स्वर्गलोक पर कब्जा कर लिया !
इंद्र देव स्वर्गलोक छोड़कर निकल गए तथा एक सरोवर के भीतर ‘कमल’ की कली के भीतर स्वयँ को छिपा लिया ! ओर वहीं से वे देवी लक्ष्मी की एक स्तुति करने लगे ! यह स्तुति ‘महालक्ष्म्यष्टक स्तोत्र’ के नाम से विख्यात हुयी ! जो वीस्तव में आठ श्लोकों की एक स्तुति है ! आठ श्लोकों से युक्त होने के कारण ही यह स्तुति ‘महालक्ष्यमष्टक स्तोत्र’ कहलाती है !
इस स्तुति अथवा स्तोत्र के पाठ के फलस्वरूप इंद्र देव को खोया हुआ ऐश्वर्य पुन: प्राप्त हुआ ! यह स्तुति हर प्रकार की दरिद्रता का नाश करने वाली है, तनिक इसका पाठ तो आरम्भ करके देखिए ! महालक्ष्मी जी के चित्र अथवी विग्रह के समक्ष शुद्ध घी का दीपक प्रज्जवलित करके स्तोत्र पाठ करना चाहिए !
नित्य स्तोत्र पाठ करने से हर प्रकार की दरिद्रता अथवा आर्थिक संकट दूर हो जाते हैं तथा ऐश्वर्यादि की प्राप्ति होती है –
“नमस्तेस्तु महामाये श्री पीठे सुरपूजिते !
शंख चक्र गदाहस्ते महालक्ष्मी नमोस्तुते !!1!!
नमस्ते गरूडारूढे कोलासुर भयंकरि !
शंख चक्र गदाहस्ते महालक्ष्मीनमोस्तुते !!2!!
सर्वज्ञे सर्व वरदे सर्व दुष्ट भयंकरि !
सर्व दु:ख हरे देवि महालक्ष्मी नमोस्तुते !!3!!
सिद्धि बुद्धि प्रदे देवि भुक्ति मुक्ति दायिनी !
मंत्र मूर्ति सदा देवि महालक्ष्मी नमोस्तुते !!4!!
आद्यंतर्हिते देवि आद्यशक्ति महेश्वरी !
योगजे योग सम्भूते महालक्ष्मी नमोस्तुते !!5!!
स्थूल सूक्ष्म महारौद्रे महाशक्ति महोदरे !
महापाप हरे देवि महालक्ष्मी नमोस्तुते !!6!!
पद्मासनस्थिते देवि परब्रह्म स्वरूपिणी !
परमेशि जगन्नमातर्महालक्ष्मी नमोस्तुते !!7!!
श्वेतांबर धरे देवि नानालंकारभूषिते !
जगत्स्थिते जगन्नमातर्महालक्ष्मी नमोस्तुते !!8!!
फलस्तुति
महालक्ष्म्यष्टकं स्तोत्रं य: पठेन्नभक्ति मान्नर: !
सर्वसिद्धिमवाप्नोति राज्यं प्राप्नोति सर्वदा !!
एककाले पठेन्नित्यं महापातक नाशनम् !
द्विकालं य: पठेन्नित्यं धनधान्यसमन्वित: !!
त्रिकालं य: पठेन्नित्यं महाशत्रु विनाशनं !
महालक्ष्मीर्भवेन्नित्यं प्रसन्नावरदा शुभा !!”
फल प्राप्ति –
महालक्ष्मी स्तोत्र का जो भकितिपूरीवक पाठ करता है, उसे समस्त सिद्धियों की प्राप्ति होती है तथा उसका खोया हुआ उसे पुन: प्राप्त हो जाता है ! एक समय पाठ करने से पाप नष्ट होते हैं ! दो समय (प्रात: तथा साँयकाल) पाठ करने से धनधान्य आदि की प्राप्ति होती है ! तीन समय (प्रात: मध्याह्न तथा साँयकाल) अर्थात त्रिकाल संध्या में पाठ करने से शत्रुओं का नाश होता है तथा महालक्ष्मी उस पर सदा प्रसन्न रहती है !
गुप्त नवरात्र पूजा विधि
-इस व्रत में मां दुर्गा की पूजा देर रात ही की जाती है।
-मूर्ति स्थापना के बाद मां दुर्गा को लाल सिंदूर, लाल चुन्नी चढ़ाई जाती है
– नारियल, केले, सेब, तिल के लडडू, बताशे चढ़ाएं और लाल गुलाब के फूल भी अर्पित करें
– गुप्त नवरात्रि में सरसों के तेल के ही दीपक जलाएं
-ॐ दुं दुर्गायै नमः का जाप करना चाहिए
मरने के 47 दिन बाद आत्मा पहुंचती है यमलोक, ये होता है रास्ते में?
मृत्यु एक ऐसा सच है जिसे कोई भी झुठला नहीं सकता। हिंदू धर्म में मृत्यु के बाद स्वर्ग-नरक की मान्यता है। पुराणों के अनुसार जो मनुष्य अच्छे कर्म करता है, वह स्वर्ग जाता है,जबकि जो मनुष्य जीवन भर बुरे कामों में लगा रहता है, उसे यमदूत नरक में ले जाते हैं। सबसे पहले जीवात्मा को यमलोक लेजाया जाता है। वहां यमराज उसके पापों के आधार पर उसे सजा देते हैं।
मृत्यु के बाद जीवात्मा यमलोक तक किस प्रकार जाती है, इसका विस्तृत वर्णन गरुड़ पुराण में है। गरुड़ पुराण में यह भी बताया गया है कि किस प्रकार मनुष्य के प्राण निकलते हैं और किस तरह वह पिंडदान प्राप्त कर प्रेत का रूप लेता है।
गरुड़ पुराण के अनुसार जिस मनुष्य की मृत्यु होने वाली होती है, वह बोल नहीं पाता है। अंत समय में उसमें दिव्य दृष्टि उत्पन्न होती है और वह संपूर्ण संसार को एकरूप समझने लगता है। उसकी सभी इंद्रियां नष्ट हो जाती हैं। वह जड़ अवस्था में आ जाता है, यानी हिलने-डुलने में असमर्थ हो जाता है। इसके बाद उसके मुंह से झाग निकलने लगता है और लार टपकने लगती है। पापी पुरुष के प्राण नीचे के मार्ग से निकलते हैं।
– मृत्यु के समय दो यमदूत आते हैं। वे बड़े भयानक, क्रोधयुक्त नेत्र वाले तथा पाशदंड धारण किए होते हैं। वे नग्न अवस्था में रहते हैं और दांतों से कट-कट की ध्वनि करते हैं। यमदूतों के कौए जैसे काले बाल होते हैं। उनका मुंह टेढ़ा-मेढ़ा होता है। नाखून ही उनके शस्त्र होते हैं। यमराज के इन दूतों को देखकर प्राणी भयभीत होकर मलमूत्र त्याग करने लग जाता है। उस समय शरीर से अंगूष्ठमात्र (अंगूठे के बराबर) जीव हा हा शब्द करता हुआ निकलता है।
– यमराज के दूत जीवात्मा के गले में पाश बांधकर यमलोक ले जाते हैं। उस पापी जीवात्मा को रास्ते में थकने पर भी यमराजके दूत भयभीत करते हैं और उसे नरक में मिलने वाली यातनाओं के बारे में बताते हैं। यमदूतों की ऐसी भयानक बातें सुनकर पापात्मा जोर-जोर से रोने लगती है, किंतु यमदूत उस पर बिल्कुल भी दया नहीं करते हैं।
– इसके बाद वह अंगूठे के बराबर शरीर यमदूतों से डरता और कांपता हुआ, कुत्तों के काटने से दु:खी अपने पापकर्मों को याद करते हुए चलता है। आग की तरह गर्म हवा तथा गर्म बालू पर वह जीव चल नहीं पाता है। वह भूख-प्यास से भी व्याकुल हो उठताहै। तब यमदूत उसकी पीठ पर चाबुक मारते हुए उसे आगे ले जाते हैं। वह जीव जगह-जगह गिरता है और बेहोश हो जाता है। इस प्रकार यमदूत उस पापी को अंधकारमय मार्ग से यमलोक ले जाते हैं।
– गरुड़ पुराण के अनुसार यमलोक 99 हजार योजन (योजन वैदिक काल की लंबाई मापने की इकाई है। एक योजन बराबर होता है, चार कोस यानी 13-16 कि.मी) दूर है। वहां पापी जीव को दो- तीन मुहूर्त में ले जाते हैं। इसके बाद यमदूत उसे भयानक यातना देते हैं। यह याताना भोगने के बाद यमराज की आज्ञा से यमदूत आकाशमार्ग से पुन: उसे उसके घर छोड़ आते हैं।
– घर में आकर वह जीवात्मा अपने शरीर में पुन: प्रवेश करने की इच्छा रखती है, लेकिन यमदूत के पाश से वह मुक्त नहीं हो पातीऔर भूख-प्यास के कारण रोती है। पुत्र आदि जो पिंड और अंत समयमें दान करते हैं, उससे भी प्राणी की तृप्ति नहीं होती, क्योंकि पापी पुरुषों को दान, श्रद्धांजलि द्वारा तृप्ति नहीं मिलती। इस प्रकार भूख-प्यास से बेचैन होकर वह जीव यमलोक जाता है।
– जिस पापात्मा के पुत्र आदि पिंडदान नहीं देते हैं तो वे प्रेत रूप हो जाती हैं और लंबे समय तक निर्जन वन में दु:खी होकर घूमती रहती है। काफी समय बीतने के बाद भी कर्म को भोगना ही पड़ता है, क्योंकि प्राणी नरक यातना भोगे बिना मनुष्य शरीर…
बंगाली टोने-टोटके:
मन में असुरक्षा की भावना को दूर करने में सहायक होते हैं टोटके। इनमें कुछ सामान्य प्रयोग वाले होते हैं, जबकि कुछ के लिए तंत्र-मंत्र का सहारा लिया जाता है। बंगाली टोने-टोटके में भी भी ऐसा कुछ किया जाता है, जिसका सकरात्मक प्रभाव व्यक्ति को समस्याओं से मुक्ति दिलवाता है। कुछ टोटके इस प्रकार प्रयोग में लाए जाते हैंः-
टोने-टोटके को शनिवार, रविवार या मंगलवार को किए जाते हैं, लेकिन दीपावली, होली और ग्रहण के मौके पर करने के अच्छे परिणाम आते हैं। दीपावली के दिन पीपल के पांच पत्तों को ताड़ लाएं और उसे रात में मता महालक्ष्मी का पूजन के बाद पत्तों पर दूध से बना मीठा व्यंजन या पनीर को पीपल के पेड़ को अर्पित कर देने से मनोकामना पूर्ण होती है।
दीपावली के दिन अपने पूर्वजों को याद कर उनका दिन में तर्पण करने के बाद किसी भूखे गरीब व्यक्ति को भोजन करवाने से अटके हुए कार्य पूरे हो जाएंगे।
वर-वधू के बीच आपसी मतभेद को दूर करने और सुखी जीवन के लिए साबुत काले उड़द में हरी मेहंदी मिलाकर उनकी दिशा में स्थित घर की ओर फेंक दें।
श्री महालक्ष्मी के चित्र या मूर्ति के सामने नौ बत्तियों के शुद्ध घी का दीपक जलाएं। ऐसा करते ही धनलाभ होगा।
शुभ कार्य में आने वाली बाधा आने या देरी होने की स्थिति में रविवार को भैरों जी के मंदिर में सिंदूर का चोला चढ़ाकर बटुक भैरव का स्तोत्र का पाठ करें। उसके बाद गायों, काऔं और काले कुत्तों को उनका आहार खिलाएं।
किसी की नजर उतारने के लिए यह टोटका अपनाएं। आधपकी रोटी पर तेल या घी लगाकर उसपर तीन सूखी मिर्च और एक चुटकी नमक डाल दें। उसे नजर लगे व्यक्ति के ऊपर से सातबार उतारें और किसी चैराहे पर रख दें।
हनुमान जी के ये 5 चमत्कारी उपाय आपको जीवन में सफलता पाने में मदद करेंगे …
ऐसा कहा जाता हैं कि हनुमान जी जिस काम में अपना आशीर्वाद दे देते हैं वो काम चुटकी बजा के हो जाता हैं. यही कारण हैं कि भक्तजनों में हनुमान जी सबसे अधिक पॉपुलर हैं.
हिन्दू शास्त्रों के अनुसार हनुमान जी अमर हैं और अभी भी इस युग में कहीं रह रहे हैं. यही कारण हैं कि अक्सर सुन्दरकाण्ड के समय भक्त लोग उनकी मौजूदगी को महसूस कर सकते हैं.
आज हम आपको हनुमान जी से सम्बंधित कुछ ऐसे टोटके बताएंगे जिन्हें करने से आपके जीवन की सारी कठिनाइयाँ तो दूर होगी ही साथ ही आपको जीवन में सफलता भी जल्दी मिलेगी.
हनुमान जी के ये टोटके जीवन में दिलाएंगे सफलता
1. कई बार आपकी राशि पर शनि भारी होता हैं जिसके चलते बनते काम भी बिगड़ जाते हैं. ऐसी स्थिति में आप शनिवार को हनुमान जी को चोला चढ़ाए. इसके साथ ही हर शनिवार को तिल के तेल का दीपक प्रज्वलित करे और हनुमान जी पर सिन्दूर और चमेली का तेल अर्पित करे.
इसके बाद आपको हनुमान चालीसा का पाठ करना होगा. ऐसा यदि आप 7 शनिवार तक करोगे तो आपके ऊपर से शनि की बुरी दशा तो हटेगी ही साथ ही आपके सभी रुके काम समय पर पुरे होंगे.
2. यदि आपके उपर मंगल की दशा भारी हैं और ये आपको सफलता पाने से रोक रही हैं तो यह उपाय करे. मंगलवार के दिन हनुमान जी को चमेली का तेल, सिन्दूर, चना और सूरजमुखी का फूल चढ़ाए.
अब पीपल के पेड़ की 9 पत्तियां ले और उस पर चन्दन की सहायता से श्री राम लिखे. अब श्री राम लिखी इन पत्तियों को हनुमान जी को अर्पित कर दे. इसके बाद हनुमान मूर्ति की 108 बार परिकृमा करते हुए जय श्री राम और जय हनुमान जा जाप करे. ऐसा करने से आपके ऊपर का भारी मंगल चला जाता हैं और आपके सारे काम बिना किसी रुकावट के फटाफट होने लगते हैं.
3. यदि सफलता पाने के रास्ते में शत्रु बाधा उत्पन्न कर रहे हैं तो यह उपाय करे. मंगलवार के दिन अपनी उंचाई के आकार का सफ़ेद नाड़ा ले और उसे सिन्दूर में रंग दे.
अब इसे नारियल पर लपेट कर हनुमान चालिसा का पाठ करे और हनुमान जी को नारियल अर्पित कर दे. ऐसा करने से आपके शरीर के आस पास एक सुरक्षा कवच बन जाएगा और शत्रु आपका बाल भी बाका नहीं कर पाएगा.
4. यदि आपको किसी काम को शुरू करने में डर लगता हैं और ये डर आपको सफलता पाने से रोक रहा हैं तो यह उपाय करे.
7 मंगलवार तक हनुमान मंदिर में सुबह शाम हनुमान चालीसा का पाठ करे और एक नारियल भी चढ़ा दे. ध्यान रहे आपको आधा नारियल मंदिर में चढ़ाना होगा और बाकी का आधा अकेले ही खाना होगा.
5. यदि सफलता पाने के रास्ते में पैसा दिक्कत बना हुआ हैं तो ये उपाय करे. 7 मंगलवार तक एक पीपल के पेड़ के नीचे दक्षिण दिशा की ओर मुख कर बैठे और हनुमान चालीसा का पाठ करे. ऐसा करने से धन आगमन के नए द्वार खुल जाएंगे.
और भी बहुत सारे प्रयोग विधि है हमारे ज्योतिष शास्त्र में आप भी जीवन में किसी भी प्रकार की समस्याओं में फंसे हुए हैं या उलझन में फंसे हुए हैं या आपके कारोबार बिजनेस सही नहीं चल पा रहे हैं तो फीस डिपॉजिट करके संपर्क करे
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पुनः प्रसारित
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घर में गरीबी आने के कारण
~~~~~~
1=रसोई घर के पास में पेशाब करना ।
2=टूटी हुई कन्घी से कंगा करना ।
3=टूटा हुआ सामान उपयोग करना।
4= घर में कूडा-करकट रखना।
5=रिश्तेदारो से बदसुलूकी करना।
6=बांए पैर से पैंट पहनना।
7=सांध्या वेला मे सोना।
8=मेहमान आने पर नाराज होना।
9=आमदनी से ज्यादा खर्च करना।
10=दाँत से रोटी काट कर खाना।
11=चालीस दीन से ज्यादा बाल रखना
12=दांत से नाखून काटना।
14=औरतो का खडे खडे बाल बांधना।
15 =फटे हुए कपड़े पहनना ।
16=सुबह सूरज निकलने तक सोते रहना।
17=पेंड के नीचे पेशाब करना।
18=बैतूल खला में बाते करना।
19=उल्टा सोना।
20=श्यमशान भूमि में हसना ।
21=पीने का पानी रात में खुला रखना
22=रात में मागने वाले को कुछ ना देना
23=बुरे ख्याल लाना।
24=पवित्रता के बगैर धर्मग्रंथ पढना।
25=शौच करते वक्त बाते,करना।
26=हाथ धोए बगैर भोजन करना ।
27=अपनी औलाद को कोसना।
28=दरवाजे पर बैठना।
29=लहसुन प्याज के छीलके जलाना।
30=साधू फकीर को अपमानित करना या उससे रोटीया फिर और कोई चीज खरीदना।
31=फूक मार के दीपक बुझाना।
32=ईश्वर को धन्यवाद किए बगैर भोजन
करना।
33=झूठी कसम खाना।
34=जूते चप्पल उल्टा देख कर उसको सीधा नही करना।
35=हालात जनाबत मे हजामत करना।
36=मकड़ी का जाला घर में रखना।
37=रात को झाडू लगाना।
38=अन्धेरे में भोजन करना ।
39=घड़े में मुंह लगाकर पानी पीना।
40=धर्मग्रंथ न पढ़ना।
41=नदी,तालाब में शौच साफ करना और उसमें पेशाब करना ।
42=गाय , बैल को लात मारना ।
43=माँ-बाप का अपमान करना ।
44=किसी की गरीबी और लाचारी का मजाक उडाना ।
45=दाँत गंदे रखना और रोज स्नान न करना ।
46=बिना स्नान किये और संध्या के समय भोजन करना ।
47=पडोसियों का अपमान करना, गाली देना ।
48=मध्यरात्रि में भोजन करना ।
49=गंदे बिस्तर में सोना ।
50=वासना और क्रोध से भरे रहना ।
51= दूसरे को अपने से हीन समझना । आदि ।
जो दूसरो का भला करता है। ईश्वर उसका भला करता है।
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घर में गरीबी आने के कारण
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1=रसोई घर के पास में पेशाब करना ।
2=टूटी हुई कन्घी से कंगा करना ।
3=टूटा हुआ सामान उपयोग करना।
4= घर में कूडा-करकट रखना।
5=रिश्तेदारो से बदसुलूकी करना।
6=बांए पैर से पैंट पहनना।
7=सांध्या वेला मे सोना।
8=मेहमान आने पर नाराज होना।
9=आमदनी से ज्यादा खर्च करना।
10=दाँत से रोटी काट कर खाना।
11=चालीस दीन से ज्यादा बाल रखना
12=दांत से नाखून काटना।
14=औरतो का खडे खडे बाल बांधना।
15 =फटे हुए कपड़े पहनना ।
16=सुबह सूरज निकलने तक सोते रहना।
17=पेंड के नीचे पेशाब करना।
18=बैतूल खला में बाते करना।
19=उल्टा सोना।
20=श्यमशान भूमि में हसना ।
21=पीने का पानी रात में खुला रखना
22=रात में मागने वाले को कुछ ना देना
23=बुरे ख्याल लाना।
24=पवित्रता के बगैर धर्मग्रंथ पढना।
25=शौच करते वक्त बाते,करना।
26=हाथ धोए बगैर भोजन करना ।
27=अपनी औलाद को कोसना।
28=दरवाजे पर बैठना।
29=लहसुन प्याज के छीलके जलाना।
30=साधू फकीर को अपमानित करना या उससे रोटीया फिर और कोई चीज खरीदना।
31=फूक मार के दीपक बुझाना।
32=ईश्वर को धन्यवाद किए बगैर भोजन
करना।
33=झूठी कसम खाना।
34=जूते चप्पल उल्टा देख कर उसको सीधा नही करना।
35=हालात जनाबत मे हजामत करना।
36=मकड़ी का जाला घर में रखना।
37=रात को झाडू लगाना।
38=अन्धेरे में भोजन करना ।
39=घड़े में मुंह लगाकर पानी पीना।
40=धर्मग्रंथ न पढ़ना।
41=नदी,तालाब में शौच साफ करना और उसमें पेशाब करना ।
42=गाय , बैल को लात मारना ।
43=माँ-बाप का अपमान करना ।
44=किसी की गरीबी और लाचारी का मजाक उडाना ।
45=दाँत गंदे रखना और रोज स्नान न करना ।
46=बिना स्नान किये और संध्या के समय भोजन करना ।
47=पडोसियों का अपमान करना, गाली देना ।
48=मध्यरात्रि में भोजन करना ।
49=गंदे बिस्तर में सोना ।
50=वासना और क्रोध से भरे रहना ।
51= दूसरे को अपने से हीन समझना । आदि ।
जो दूसरो का भला करता है। ईश्वर उसका भला करता है।
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*मृत्य… मौत… अंत !!!
(शिव पुराण से)
मृत्यु कैसी भी हो काल या अकाल, उसकी प्रक्रिया छह माह पूर्व ही शुरू हो जाती है। छह माह पहले ही मृत्यु को टाला जा सकता है, अंतिम तीन दिन पूर्व सिर्फ देवता या मनुष्य के पुण्य ही मृत्यु को टाल सकते हैं।
मौत का अहसास व्यक्ति को छह माह पूर्व ही हो जाता है। विकसित होने में 9 माह, लेकिन मिटने में 6 माह यानि 3 माह कम। भारतीय योग तो हजारों साल से कहता आया है कि मनुष्य के स्थूल शरीर में कोई भी बीमारी आने से पहले आपके सूक्ष्म शरीर में छ: माह पहले आ जाती है यानी छ: माह पहले अगर सूक्ष्म शरीर पर ही उसका इलाज कर दिया जाए तो बहुत-सी बीमारियों पर विजय पाई जा सकती है।
कहते हैं कि हिन्दू शास्त्रों के अनुसार जन्म-मृत्यु एक ऐसा चक्र है, जो अनवरत चलता रहता है। कहते हैं जिसने जन्म लिया है उसकी मृत्यु होना भी एक अटल सच्चाई है, लेकिन कई ऋषि- मुनियों ने इस सच्चाई को झूठला दिया है। वे मरना सीखकर हमेशा जिंदा रहने का राज जान गए और वे सैकड़ों वर्ष और कुछ तो हजारों वर्ष जीकर चले गए और कुछ तो आज तक जिंदा हैं। कहते हैं कि ऋषि वशिष्ठ सशरीर अंतरिक्ष में चले गए थे और उसके बाद आज तक नहीं लौटे। परशुराम, हनुमानजी, कृपाचार्य और अश्वत्थामा के आज भी जीवित होने की बात कही जाती है।
जरा-मृत्यु के विनाश के लिए ब्रह्मा आदि देवताओं ने सोम नामक अमृत का आविष्कार किया था। सोम या सुरा एक ऐसा रस था जिसके माध्यम से हर तरह की मृत्यु से बचा जा सकता था। इस पर अभी शोध होना बाकी है कि कौन से भोजन से किस तरह का भविष्य निकलता है।
👉 मृत्यु 18 प्रकार की
धन्वंतरि आदि आयुर्वेदाचार्यों ने अपने ग्रंथों में 100 प्रकार की मृत्यु का वर्णन किया है जिसमें 18 प्रमुख प्रकार हैं। उक्त सभी में एक ही काल मृत्यु है और शेष अकाल मृत्यु मानी गई है। काल मृत्यु का अर्थ कि जब शरीर अपनी आयु पूर्ण कर लेता है और अकाल मृत्यु का अर्थ कि किसी बीमारी, दुर्घटना, हत्या, आत्महत्या आदि से मर जाना। अकाल मृत्यु को रोकने के प्रयास ही आयुर्वेद निदान और चिकित्सा हैं। आयु के न्यूनाधिक्य की एक-एक माप धन्वंतरि ने बताई है।
👉 तंत्र ज्योतिष द्वारा मृत्यु पर विजय
आयुर्वेदानुसार इसके भी 3 भेद हैं- 1.: आदिदैविक, 2. आदिभौतिक और 3. आध्यात्मिक। आदिदैविक और आदिभौतिक मृत्यु योगों को तंत्र और ज्योतिष उपयोग द्वारा टाला जा सकता है, परंतु आध्यात्मिक मृत्यु के साथ किसी भी प्रकार की छेड़छाड़ नहीं की जा सकती। अत: मृत्यु के लक्षण चिन्हों के प्रकट होने पर ज्योतिषीय आकलन के पश्चात उचित निदान करना चाहिए। जब व्यक्ति की समयपूर्व मौत होने वाली होती है तो उसके क्या लक्षण हो सकते हैं। लक्षण जानकर मौत से बचने के उपाय खोजे जा सकते हैं। आयुर्वेद के अनुसार बहुत गंभीर से गंभीर बीमारी का इलाज बहुत ही छोटा, सरल और सुलभ होता है बशर्ते कि उसकी हमें जानकारी हो और समयपूर्व हम सतर्क हो जाएं।
👉 वेद पुराण व्याख्या
मृत्यु के बारे में वेद, योग, पुराण और आयुर्वेद में विस्तार से लिखा हुआ है। पुराणों में गरूड़ पुराण, शिव पुराण और ब्रह्म पुराण में मृत्यु के स्वभाव का उल्लेख मिलेगा। मृत्यु के बाद के जीवन का उल्लेख मिलेगा। परिवार के किसी भी सदस्य की मृत्यु के बाद घर में गीता और गरूड़ पुराण सुनने की प्रथा है, इससे मृतक आत्मा को शांति और सही ज्ञान मिलता है जिससे उसके आगे की गति में कोई रुकावट नहीं आती है। स्थूल शरीर को छोड़ने के बाद सच्चा ज्ञान ही लंबे सफर का रास्ता दिखाता है।
ध्यान रहे कि मृत्यु के पूर्वाभास से जुड़े लक्षणों को किसी भी लैब टेस्ट या क्लिनिकल परीक्षण से सिद्ध नहीं किया जा सकता बल्कि ये लक्षण केवल उस …
*मरने के 47 दिन बाद आत्मा पहुंचती है यमलोक, ये होता है रास्ते में?
मृत्यु एक ऐसा सच है जिसे कोई भी झुठला नहीं सकता। हिंदू धर्म में मृत्यु के बाद स्वर्ग-नरक की मान्यता है। पुराणों के अनुसार जो मनुष्य अच्छे कर्म करता है, वह स्वर्ग जाता है,जबकि जो मनुष्य जीवन भर बुरे कामों में लगा रहता है, उसे यमदूत नरक में ले जाते हैं। सबसे पहले जीवात्मा को यमलोक लेजाया जाता है। वहां यमराज उसके पापों के आधार पर उसे सजा देते हैं।
मृत्यु के बाद जीवात्मा यमलोक तक किस प्रकार जाती है, इसका विस्तृत वर्णन गरुड़ पुराण में है। गरुड़ पुराण में यह भी बताया गया है कि किस प्रकार मनुष्य के प्राण निकलते हैं और किस तरह वह पिंडदान प्राप्त कर प्रेत का रूप लेता है।
गरुड़ पुराण के अनुसार जिस मनुष्य की मृत्यु होने वाली होती है, वह बोल नहीं पाता है। अंत समय में उसमें दिव्य दृष्टि उत्पन्न होती है और वह संपूर्ण संसार को एकरूप समझने लगता है। उसकी सभी इंद्रियां नष्ट हो जाती हैं। वह जड़ अवस्था में आ जाता है, यानी हिलने-डुलने में असमर्थ हो जाता है। इसके बाद उसके मुंह से झाग निकलने लगता है और लार टपकने लगती है। पापी पुरुष के प्राण नीचे के मार्ग से निकलते हैं।
– मृत्यु के समय दो यमदूत आते हैं। वे बड़े भयानक, क्रोधयुक्त नेत्र वाले तथा पाशदंड धारण किए होते हैं। वे नग्न अवस्था में रहते हैं और दांतों से कट-कट की ध्वनि करते हैं। यमदूतों के कौए जैसे काले बाल होते हैं। उनका मुंह टेढ़ा-मेढ़ा होता है। नाखून ही उनके शस्त्र होते हैं। यमराज के इन दूतों को देखकर प्राणी भयभीत होकर मलमूत्र त्याग करने लग जाता है। उस समय शरीर से अंगूष्ठमात्र (अंगूठे के बराबर) जीव हा हा शब्द करता हुआ निकलता है।
– यमराज के दूत जीवात्मा के गले में पाश बांधकर यमलोक ले जाते हैं। उस पापी जीवात्मा को रास्ते में थकने पर भी यमराजके दूत भयभीत करते हैं और उसे नरक में मिलने वाली यातनाओं के बारे में बताते हैं। यमदूतों की ऐसी भयानक बातें सुनकर पापात्मा जोर-जोर से रोने लगती है, किंतु यमदूत उस पर बिल्कुल भी दया नहीं करते हैं।
– इसके बाद वह अंगूठे के बराबर शरीर यमदूतों से डरता और कांपता हुआ, कुत्तों के काटने से दु:खी अपने पापकर्मों को याद करते हुए चलता है। आग की तरह गर्म हवा तथा गर्म बालू पर वह जीव चल नहीं पाता है। वह भूख-प्यास से भी व्याकुल हो उठताहै। तब यमदूत उसकी पीठ पर चाबुक मारते हुए उसे आगे ले जाते हैं। वह जीव जगह-जगह गिरता है और बेहोश हो जाता है। इस प्रकार यमदूत उस पापी को अंधकारमय मार्ग से यमलोक ले जाते हैं।
– गरुड़ पुराण के अनुसार यमलोक 99 हजार योजन (योजन वैदिक काल की लंबाई मापने की इकाई है। एक योजन बराबर होता है, चार कोस यानी 13-16 कि.मी) दूर है। वहां पापी जीव को दो- तीन मुहूर्त में ले जाते हैं। इसके बाद यमदूत उसे भयानक यातना देते हैं। यह याताना भोगने के बाद यमराज की आज्ञा से यमदूत आकाशमार्ग से पुन: उसे उसके घर छोड़ आते हैं।
– घर में आकर वह जीवात्मा अपने शरीर में पुन: प्रवेश करने की इच्छा रखती है, लेकिन यमदूत के पाश से वह मुक्त नहीं हो पातीऔर भूख-प्यास के कारण रोती है। पुत्र आदि जो पिंड और अंत समयमें दान करते हैं, उससे भी प्राणी की तृप्ति नहीं होती, क्योंकि पापी पुरुषों को दान, श्रद्धांजलि द्वारा तृप्ति नहीं मिलती। इस प्रकार भूख-प्यास से बेचैन होकर वह जीव यमलोक जाता है।
– जिस पापात्मा के पुत्र आदि पिंडदान नहीं देते हैं तो वे प्रेत रूप हो जाती हैं और लंबे समय तक निर्जन वन में दु:खी होकर घूमती रहती है। काफी समय बीतने के बाद भी कर्म को भोगना ही पड़ता है, क्योंकि प्राणी नरक यातना भोगे बिना मनुष्य शरीर…
*वास्तु के अनुसार, इन चीजों के घर में रहने से आती है अशांति
जिस तरह वास्तु के अनुसार, कुछ चीजों को घर में रखने से सुख-शांति का माहौल बनता है, उसी तरह घर में कुछ चीजों के होने से अशांति का माहौल भी बनता है। वास्तु के अनुसार, कुछ चीजें ऐसी होती हैं जिन्हें घर मे रखने से घर का माहौल बिगड़ सकता है। आइए जानते हैं वो कौन सी चीजें हैं जिन्हें घर में रखने से तनाव बढ़ता है।
– गंदा पानी
घर में अगर कहीं से गंदा पानी लीक हो रहा हो तो तुरंत उसकी मरम्मत करा लें। घर में गंदा पानी रहना सही नहीं है। इससे न सिर्फ बीमारियों के होने का खतरा बढ़ता है बल्कि वास्तु के अनुसार भी यह सही नहीं है।
– कांटेदार पौधे
घर के भीतर कांटेदार पौधों को रखने से बचना चाहिए। ऐसे पौधे लगाएं लेकिन घर के बाहर। जिन घरों में ऐसे पौधे होते हैं, उन घरों में लोगों की सेहत अक्सर खराब रहती है।
– घर के भीतर पत्थर न रखें
यह सुनिश्चित करें कि आपके घर के भीतर कोई पत्थर न हो। घर के भीतर पत्थर होने का सीधा सा मतलब यह है कि परिवार के लोगों को सफलता पाने के लिए काफी संघर्ष करना होगा। इसके अलावा घर में अशांति भी बढ़ती है।
– कचड़ा
रोजाना के कचड़े को हर रोज घर से बाहर फेंक दें। घर में कचड़ा जमा होने से रिश्तों में खटास आने की आशंका बढ़ जाती है। साथ ही कर्ज की आशंका भी बढ़ जाती है।
– मुख्य द्वार
अगर आपके घर के आगे कोई रास्ता है तो वह दरवाजे के प्लेटफॉर्म से ऊंचा नहीं होना चाहिए। अगर दोनों एक समान स्तर पर हैं तो भी ठीक है लेकिन मुख्य द्वार नीचे नहीं होना चाहिए
ऊपरी हवा पहचान और निदान
नमस्कार दोस्तों, प्रायः सभी धर्मग्रंथों में ऊपरी हवाओं, नजर दोषों आदि का उल्लेख है। कुछ ग्रंथों में इन्हें बुरी आत्मा कहा गया है तो कुछ अन्य में भूत-प्रेत और जिन्न।यहां ज्योतिष के आधार पर नजर दोष का विश्लेषण प्रस्तुत है।ज्योतिष सिद्धांत के अनुसार गुरु पितृदोष, शनि यमदोष, चंद्र व शुक्र जल देवी दोष, राहु सर्प व प्रेत दोष, मंगल शाकिनी दोष, सूर्य देव दोष एवं बुध कुल देवता दोष का कारक होता है। राहु, शनि व केतु ऊपरी हवाओं के कारक ग्रह हैं। जब किसी व्यक्ति के लग्न (शरीर), गुरु (ज्ञान), त्रिकोण (धर्म भाव) तथा द्विस्वभाव राशियों पर पाप ग्रहों का प्रभाव होता है, तो उस पर ऊपरी हवा की संभावना होती है।
लक्षण-
नजर दोष से पीड़ित व्यक्ति का शरीर कंपकंपाता रहता है। वह अक्सर ज्वर, मिरगी आदि से ग्रस्त रहता है।कब और किन स्थितियों में डालती हैं ऊपरी हवाएं किसी व्यक्ति पर अपना प्रभाव?
*जब कोई व्यक्ति दूध पीकर या कोई सफेद मिठाई खाकर किसी चौराहे पर जाता है, तब ऊपरी हवाएं उस पर अपना प्रभाव डालती हैं।गंदी जगहों पर इन हवाओं का वास होता है, इसीलिए ऐसी जगहों पर जाने वाले लोगों को ये हवाएं अपने प्रभाव में ले लेती हैं। इन हवाओं का प्रभाव रजस्वला स्त्रियों पर भी पड़ता है। कुएं, बावड़ी आदि पर भी इनका वास होता है। विवाह व अन्य मांगलिक कार्यों के अवसर पर ये हवाएं सक्रिय होती हैं। इसके अतिरिक्त रात और दिन के १२ बजे दरवाजे की चौखट पर इनका प्रभाव होता है।
दूध व सफेद मिठाई चंद्र के द्योतक हैं। चौराहा राहु का द्योतक है। चंद्र राहु का शत्रु है। अतः जब कोई व्यक्ति उक्त चीजों का सेवन कर चौराहे पर जाता है, तो उस पर ऊपरी हवाओं के प्रभाव की संभावना रहती है।
कोई स्त्री जब रजस्वला होती है, तब उसका चंद्र व मंगल दोनों दुर्बल हो जाते हैं। ये दोनों राहु व शनि के शत्रु हैं। रजस्वलावस्था में स्त्री अशुद्ध होती है और अशुद्धता राहु की द्योतक है। ऐसे में उस स्त्री पर ऊपरी हवाओं के प्रकोप की संभावना रहती है।
कुएं एवं बावड़ी का अर्थ होता है जल स्थान और चंद्र जल स्थान का कारक है। चंद्र राहु का शत्रु है, इसीलिए ऐसे स्थानों पर ऊपरी हवाओं का प्रभाव होता है।
जब किसी व्यक्ति की कुंडली के किसी भाव विशेष पर सूर्य, गुरु, चंद्र व मंगल का प्रभाव होता है, तब उसके घर विवाह व मांगलिक कार्य के अवसर आते हैं। ये सभी ग्रह शनि व राहु के शत्रु हैं, अतः मांगलिक अवसरों पर ऊपरी हवाएं व्यक्ति को परेशान कर सकती हैं।
दिन व रात के १२ बजे सूर्य व चंद्र अपने पूर्ण बल की अवस्था में होते हैं। शनि व राहु इनके शत्रु हैं, अतः इन्हें प्रभावित करते हैं। दरवाजे की चौखट राहु की द्योतक है। अतः जब राहु क्षेत्र में चंद्र या सूर्य को बल मिलता है, तो ऊपरी हवा सक्रिय होने की संभावना प्रबल होती है।
मनुष्य की दायीं आंख पर सूर्य का और बायीं पर चंद्र का नियंत्रण होता है। इसलिए ऊपरी हवाओं का प्रभाव सबसे पहले आंखों पर ही पड़ता है।